प्रदीप श्रीवास्तव
अगर कहें कि आज पोस्ट कार्ड दिवस है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी . अब तो हर दिन कोई न कोई दिवस मनाने की परम्परा सी चल पड़ी है. इसी श्रृंखला में आज के दिन को 'पोस्टकार्ड का दिन' मना लेते हैं .पोस्ट कार्ड हमारे अतीत का गवाह भी तो रहा है.वहीँ शादी-ब्याह , मरनी-करनी की ख़बरोंके साथ-साथ न जाने कितने आंदोलनों का साक्ष्य भी. मज़े की बात तो यह है की अस्सीके दशक मैं प्रेम-प्रसंगों का दस्तावेज़ भी था पोस्ट कार्ड.यह वह दौर था जब 'पत्र-मित्रता' अपने चरम सीमा पर थी.युवाओं का तो पूछना ही क्या,अपनी भावनाओं को नीली या काली स्याही से इस छोटे से पोस्ट कार्ड पर उंडेल कर अपने प्रेमी-या प्रेमिका को भेज देते थे.उस समय पोस्टकार्ड की कीमत मात्र पंद्रह पैसे हुआ करती थी. तब भी अंतर्देशीय पत्र व लिफ़ाफे महंगे ही हुआ करते थे.जिसे हर कोई युवा वहन नहीं कर सकता था.
पत्र-मित्रता के उस दौर मैं पोस्टकार्ड एक सस्ता एवं सुगम साधन हुआ करता था. मेरे भी कई पत्र-मित्र थे ,कोई नेपाल से था तो कोई बुडापेस्ट (हंगरी की राजधानी) से.भारत के न जाने कितनो शहरों में उनकी संख्या थी.ढलती उम्र में याद नहीं. उन्ही मित्रो में से कोई आज देश के शीर्ष अख़बारके संपादक हैं तो कोई साहित्यकार ,कोई आर्किटेक्ट है तो कोई रंगकर्मी .यह सब पोस्ट कार्ड की ही देन थी. अस्सी के दशक एवं नब्बे के पूर्वार्ध तक पोस्टकार्ड का बोलबाला हुआ करता था. पोस्ट मैंन के हाथों में डाक के बंडलों में साठ प्रतिशत पोस्ट कार्डों की संख्या होती थी.जो अब लुप्तप्राय सी हो चुकी है. डाक घरों में पोस्ट कार्ड मिलते तो जरुर हैं पर खरीददार नहीं . उन दिनों जिस पोस्ट कार्ड पर हल्दी का छींटा लगा होता तोसमझ लिया जाता की कोई शुभ समाचार वाला पोस्ट कार्ड आया है ,वहीँ अगर पोस्ट कार्ड कहीं किनारे से कटा या फटा होता था तो यह जानने में देरी नहीं लगाती थी कि किसी अशुभ समाचार का प्रतीकहै यह पोस्ट कार्ड .जिसे पढ़ने के तुरंत बाद फाड़ कर नष्ट कर दिया जाता था. पोस्टकार्डों के माध्यम से दशहरा, दिवाली या फिर नए वर्ष की शुभकामनाएं भी भेजी जाती थीं. यह सबसे सस्ता व सुगम साधन होता था.
आज से लगभग 153 साल पहले दुनिया का पहला पोस्टकार्ड सन 1869 में आस्ट्रिया में जारी हुआ था .जबकि भारत भारत में पहला पोस्टकार्ड 1 जुलाई 1879 ईस्वी में जारी किया गया था, हल्के भूरे रंग में छपे इस पहले पोस्टकार्ड की कीमत 3 पैसे थी और इस कार्ड पर ‘ईस्टइण्डिया पोस्टकार्ड’ छपा था. बीच में ग्रेट ब्रिटेन का राजचिह्न मुद्रित था और ऊपर की तरफ दाएं कोने मे लाल-भूरे रंग में छपी ताज पहने साम्राज्ञी विक्टोरिया की मुखाकृति थी . कहते हैं कि साल की पहली तीन तिमाही में ही लगभग 7.5 लाख रुपए के पोस्टकार्ड बेचे गए थे .पता हो कि भारतीय डाकघरों में चार तरह के पोस्टकार्ड मिलते रहे हैं - मेघदूत पोस्टकार्ड, सामान्य पोस्टकार्ड, प्रिंटेड पोस्टकार्ड और कम्पटीशन पोस्टकार्ड. ये क्रमशः : 25 पैसे, 50 पैसे, 6 रुपये और 10 रुपये में उपलब्ध हैं . कम्पटीशन पोस्टकार्ड फिलहाल बंद हो गया है इन चारों पोस्टकार्ड की लंबाई 14 सेंटीमीटर और चौड़ाई 9 सेंटीमीटर होती है . जब कि पहला चित्रित पोस्टकार्ड फ्रांस ने 1889 में जारी किया था और इस पर एफिल टावर अंकित था .
पोस्टकार्ड का विचार सबसे पहले ऑस्ट्रियाई प्रतिनिधि कोल्बे स्टीनर के दिमाग में आया था, उन्होंने इसके बारे में वीनर नॉस्टो में सैन्य अकादमी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. एमैनुएल हार्मोन को बताया। उन्हें यह विचार काफी आकर्षक लगा और उन्होंने 26 जनवरी 1869 को एक अखबार में इसके बारे में लेख लिखा। ऑस्ट्रिया के डाक मंत्रालय ने इस विचार पर बहुत तेजी से काम किया और पोस्टकार्ड की पहली प्रति एक अक्टूबर 1869 में जारी की गई। यहीं से पोस्टकार्ड के सफर की शुरुआत हुई। दुनिया का यह प्रथम पोस्टकार्ड पीले रंग का था। इसका आकार 122 मिली मीटर लंबा और 85 मिली मीटर चौड़ा था। उसके एक तरफ पता लिखने के लिए जगह छोड़ी गई थी, जबकि दूसरी तरफ संदेश लिखने के लिए खाली जगह छोड़ी गई। आस्ट्रिया में यह इतना लोकप्रिय हुआ कि इसकी देखा देखी अन्य देशों ने भी इसे अपनाने में देरी नहीं की .मालूम हो कि पोस्टकार्डों के संग्रहणऔर अध्ययन को अंग्रेजी में डेल्टियोलॉजी कहते हैं.