अयोध्या और....7
दो माह बाद यानी 27 फरवरी को वैवाहिक जीवन के पूरे तीस साल हो जायेंगे ,अब आप कहेंगे कि यह भी कोई बात हुई ,सही भी है. पर इसी बात में ही तो बात है.मुझे लगा कि विवाह को लेकर जो कुछ मेरे साथ हुआ ,वह कम रोचक नहीं है ,इसलिए आप सभी के साथ साझा कर रहा हूँ ,शायद आप को जानकर अच्छा भी लगे.
बात सन 1992 के जनवरी माह की है.उन दिनों मैं हरियाणा के गुड़गांव (अब गुरुग्राम)
से निकलने वाले हिंदी दैनिक 'जनसंदेश' में बतौर फीचर संपादक कार्यरत था.उम्र यही तीस से थोड़ा अधिक .या यूँ
कहें कि शादी करने वाली हो गई थी.अम्मा-बाबू इस बात के लिए परेशान भी रहते,रिश्ते
कम ही आते ,जो आते भी वो इस लिए बिदक जाते की 'लड़का
पत्रकार है,क्या कमाता होगा ? क्या खुद खाएगा,और क्या मेरी बेटी को खिलायेगा. उसका
मुख्य कारण था कि उन दिनों अख़बारों मैं वेतन की बहुत बुरी स्थिति हुआ करती थी. बात
भी सही थी. डेस्क पर काम करने वालों की पूछिए ही नहीं. तीन चार विकली आफ़ में काम कर
लिया तो आगे वही छुट्टी एक साथ लेकर घर जाना हो जाता.
इसी क्रम में उस
वर्ष 26 जनवरी अर्थात गणतंत्र दिवस रविवार को पड़ रहा था ,इस
लिए चार दिन की और छुट्टी लेकर अपने घर फैजाबाद(अब अयोध्या)जाने का कार्यक्रम बनाया ,विधिवत
संपादक जी से स्वीकृत भी करा ली. उन दिनों फोन अरे वही चोगा वाला ,सभी
के यहाँ तो होते नहीं थे ,जिसके
घर होता भी था तो उसकी हालत पूछिए ही मत.ख़ैर साहब मेरे घर से लगकर चार-पांच घर छोड़
कर मास्टर चाचा (स्व शांति स्वरूप वर्मा जी,वाही मनोहर लाल स्कूल वाले) के यहाँ होता
था ,एक कहावत है न गांव की भौजाई -जगभर की भौजाई ,बस
वाही हालत उस फ़ोन की थी. हां तो बता रहा था कि 24 जनवरी की रात संपादक जी से घर बात
करने की अनुमति लेकर फोन मिलाया और छोटे भाई को बुलाने का आग्रह कर फोन काट दिया. लगभग
चालीस मिनट के बाद फिर मिलाया .इतना लंबा गैप इसलिए जहाँ फोन किया था वहां से कोई घर
जा कर यह संदेश तो दे सके,और वह वहां आ सकें.
छोटा
भाई फोन पर आया ,उससे मैं जैसे ही कहा कि कल रात (25 की)चल
कर 26 की सुबह घर पहुंच रहा हूँ,इतना कहना ही था की दूसरी तरफ से तपाक
से बात काटते हुए भाई बोला कि अच्छा हुआ की फोन कर लिया,हम
लोग करने ही वाले थे,यह सुनकर मैं सकपका गया ,लगा
की बाबू की तबियत अधिक ख़राब हो गई क्या,जो बताया नहीं. अभी कुछ बोलता ही कि उसने
बोला की 'आ जाओ ,जरुरी है,तुम्हारी
शादी तय हो गई है,यह सुनकर मैं हक्का-बक्का रह गया ,तभी
सामने बैठे संपादक जी ने मेरे चेहरे के भाव देख कर पूछ बैठे क्या हुआ? कुछ छड सोचकर उन्हें यह जानकारी दी.
जिसे सुनते ही उन्होंने पहले आशीर्वाद दिया,उसके बाद मिठाई के नाम पर रात्रि पाली
के सभी (पूरे प्रेस कर्मियों को चाय पिलवाई. आखिर गुडगांव के उस छोटे से कापसहेड़ा कस्बे
में इतनी रात मिठाई कहाँ मिलती.
ख़ैर
साहब , 25 को चल कर 26 की सुबह फैजाबाद घर पंहुचा तो सारा वाक्या का पता चला
. हुआ यूँ कि 16 जनवरी को मेरी पत्नी के माता-पिता उनको लेकर फैजाबाद आये और मिलिट्री
मंदिर देखने-दिखाने का क्रम चला.छोटा भाई भी साथ ही था. अम्मा को लड़की भा गई ,बात
फिट . वह इसलिए कि शादी के लिए मैंने पहले ही कह रखा था कि आप लोग (जिसमें दोनों बहने , बहनोई एवं भाई शामिल थे) जहाँ चाहो करो,मुझे
कोई आपत्ति नहीं होगी. हुआ भी वही . अम्मा-बाबू एवं भाई इन्हें देख कर लोटे ही थे कि
इतने में बनारस से छोटी बहन-बहनोई पहुँच गए ,सभी
को अच्छे कपडे(भाई तब कहीं बहार जाना होता था तो कुछ अच्छे कपड़े होते थे जिन्हें पहना
जाता था,आज की तरह ब्रांडेड नहीं) में देख कर पूछा तो अम्मा ने सारी बातें बता
दीं. बस क्या था ,यह तय हुआ कि बरीक्षा व गोद भराई की रस्म कल ही कर दी जाये. बस रात
10 बजे छोटे बहनोई और भी इनके मामा के घर पहुँच गए ,जहाँ
सभी लोग रुके थे.इतनी रात को सभी को देख कर उन लोगों को कोई आशंका हुई ,लेकिन
जब बताया गया की कल दोनों रस्में करनी है,तो थोड़ी रहत उन सबको मिली.इसी बीच छोटे
बहनोई साहब सुबह ही अमेठी पहुंचे और जीजा ,जिज्जी
व बच्चों को लेकर फैजाबाद पहुँच गए. फिर फोटो के आधार पर सारी प्रक्रियाएं पूरी करवाई
गईं. और इस तरह से अगले माह की 27 तारीख (फरवरी 1992) को हम सप्तपदी के सात फेरों के
साथ बांध दिए गए.
शादी के बाद जब
वापस गुड़गांव लौटा तो पता चला कि चौटाला (ओम प्रकाश चौटाला,पूर्व
मुख्यमंत्री ,हरियाणा, आज कल सरकारी मेहमान बन कर संखिचों के पीछे हैं ) ने एक साथ पुराने
35 कर्मियों को बहार का रास्ता दिखा दिया था,जिसमें मेरा भी एक नाम था. अब आप सोचो ,शादी
के बाद लोग हनीमून (तब तो यह सब होता नहीं था,यूँ ही लिख दिया)पर जाते थे ,लेकिन
इधर तो संसथान ने ही बहार का रास्ता दिखा दिया था.उन दिनों को याद कर रूह कांप जाती
है. ख़ैर ....
इसी के साथ अयोध्या और ... समाप्त