पृथक तेलंगाना राज्य का मामला
एक बार फिर केंद्र के पाले में
हाल में तेलंगाना के 119 विधान सभा सीटों में से मात्र 12 बारह सीटों के लिये हुए उप चुनाव में ग्यारह सीटों पर तेलंगाना राष्ट्र समिति के उम्मीदवारों ने सफलता हासिल की वहीँ एक मात्र निज़ामाबाद शहर की सीट पर( तेलंगाना राष्ट्र समिति द्वारा समर्थित ) भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार वाई लक्ष्मीनारायण की झोली में फिर से जाने के बाद यह कहा जा सकता है कि इस चुनाव परिणाम से पूरे तेलंगाना क्षेत्र की जनाभिव्यक्ति नहीं है,लेकिन इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता है किबारह सीटों के लिये हुए यह चुनाव केवल विधान सभा की खाली हुई बारह सीटों कों भरने का उपक्रम नहीं ,बल्कि तेलंगाना क्षेत्र में कराया गया एक जनमत संग्रह था.क्यों कि इन बारह सीटों के चुनाव से तेलंगाना क्षेत्र की सभी 119 सीटों की जनभावनाएं सिमटी हुईं थीं प्रथक तेलंगाना की मांग के सन्दर्भ मे केंद्र सरकार द्वारा गठित श्री कृष्णा समिति के सामने पूरे क्षेत्र का यह सर्वाधिक सशक्त व प्रमाणिक दस्तावेज है.जिसे समिति अपने रिपोर्ट बना सकती है .
वैसे निराने तो केंद्र सरकार व कांग्रेस अध्यक्ष कों ही लेना है.लेकिन चुनाव परिणामों से इतना तो कहा ही जा सकता है कि इस मामले में अब संदेह कि कोई गुंजाईश नहीं रह गई है कि तेलंगाना क्षेत्र की वास्तविक आकांक्षा क्या है.सही मायने में देखा जाय तो 30 जुलाई ,दिन शुक्रवार वर्ष 2010 का दिन भी तेलंगाना के इतिहास में मील का पत्थर साबित हो गया .27 जुलाई कों मतदान तो केवल प चुनाव की औपचारिकता भर थी.इस दिन तो पूरे तेलंगाना क्षेत्र के चार करोड़ निवासियों कि पृथक राज्य कि कामना अट्टहास कर रही थी.क्यों कि प्रथक तेलंगाना एवम सयुंक्त आंध्र ,दोनों नावों पर पेर रखने वालों का सूपड़ा साफ होगया था.सबसे बुरा हाल तो तेलुगु देशम पार्टी के मुखिया नारा चन्द्र बाबू का हुआ ,जिनके प्रताशियों की जमानत तक नहीं बचा सकी. ये वही बाबू हैं जिन्होंने तेलंगाना एवम आन्ध्र कों अपनी दोनों आखें बता रहे थे ,और ठीक चुनाव के पहले बभाली बांध परियोजना का हंगामा खड़ा कर लोंगों का ध्यान तेलंगाना से हटा कर बभाली की तरफ बटाना चाहते थे लेकिन चुनाव में वे चौथे स्थान पर रहे. कुल मतदान का आठवां हिस्सा भी उनकी झोली में नहीं गिरा. जिसे देख कर कहा जा सकता है कि तेलंगाना क्षेत्र में में उनकी पार्टी के लिये अस्तित्व का ही खतरा पैदा होगया है. शायद यही कारण हैकि उनकी पार्टी के कई नेता उनका साथ छोड़कर तेरास का दमन थाम रहे हैं.वहीँ कांग्रेस कों भी कोई सफलता नहीं मिली ,एक भी सीट उन्हें भी नहीं मिली .लेकिन तेदेपा से उनकी स्थिति बेहतर कही जा सकती है.शायद कांग्रेसी नेताओं कि मज़बूरी थी कि उन्हें पार्टी हाई कमान के आदेश कों मानना मज़बूरी थी, लेकी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी श्रीनिवास (निज़ामाबाद शहर से कांग्रेस प्रत्याशी) कों जनता ने कतई माफ़ नहीं किया .उन्हें लगातार दूसरी बार हर का सामना करना पड़ा.वे अंतिम chhdon तक अपनी राजनितिक महत्वकाक्षावों के लिये अपना स्वर बदलते रहे.लेकिन जनता ने इस बार भी उन्हें नकार दिया.श्री श्रीनिवास कों लगा था कि इस बार जीतने के बाद वे मुख्य मंत्री न सही काम से काम उप मुख्यमंत्री तो बन ही जायेंगे. सन 2004 के चुनाव में उनहोने तत्कालीन मुख्य मंत्री वाई एस राज शेखर रेड्डी के साथ मील कर काफी मेहनत की थी ,जिसके परिणाम स्वरुप प्रदेश में काफी समय बाद कांग्रेस की सरकार बनी.अभी से डी एस की नज़र मुख्य मंत्री की कुर्सी पर टिकी हुई है.उस समय वाई एस की पदयात्रा की सफलता ने उन्हें मुख्य मंत्री बनवा दिया था ,इसी के चलते उस समय मुख्य मंत्री की कुर्सी उनके हाथ से फिसल गई.फिर आया पूरे पॉँच साल बाद चुनाव का मौका .सन 2009 के चुनाव में डी एस अंतिम चरण में अपने अल्पसंख्यकों के लिये दिए एक बयान "जो आप की तरफ उंगली उठायेगा,उसके हाथ काट दूंगा" से हिन्दू मतदाता उनके खिलाफ हो गए ,फिर क्या सभी ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार वाई लक्ष्मी नारायण कों जीता कर विधान सभ में भेज दिया.इसी बीच वाई एस की एक दुर्घटन में मौत हो गई,उस समय भी डी एस कों उम्मीद थी की वे ही मुख्य मंत्री बनेंगे लेकिन विधान सभा के सदस्य न होने के कारण इस बार भी वे चुक गए अपने लक्ष्य से.इसी दौरान पृथक तेलंगाना राज्य की मांग ने जोर पकड़ा ,कई छात्रों व तेलंगाना समर्थकों ने अपनी जन तक दे डाली,जिसके चलते तेलंगाना के कई विधायकोने तेलंगाना की मांग के समर्थ में इस्तीफा दे दिया,जिनमे 12 विधायकों के इस्तीफे मंजूर कर लिये गए,जिनमे निज़ामाबाद शहर विधयक लक्ष्मी नारायण भी शामिल थे.
फिर उप चुनाव की घोषणा हुई,जिसके बाद डी एस कों लगा की इस बार वह जरुर जीत जाएँगे.इस उप चुनाव में उनहोने पैसा पानी की तरह बहाया ,बताते हैं की कम से कम तीस से चालीस करोड़ खर्च किये.लेकिन वे सफल नहीं हो पाए ,लगातार दूसरी बार हर के चलते उनके राजनैतिक जीवन पर एक प्रश्न लग गया .चुनाव के दौरान वे एक ही रात लगाते रहे की तेलंगन की मांग कों केवल कांग्रेस ही पूरी कर सकती है.इस बीच उन्हों ने यह संकेत भी देने शुरू कर दिए कि चुनाव में जीत के बाद वे मुख्य मंत्री या उप मुख्य मंत्री तो जरुर बनेंगे ,तब तेलंगाना का भाग्य पलट देंगे.लेकिन तेलंगाना कि जनता ने उनके इन वायदों कों झुठलाते हुए उन्हें विधान दभा में ही जाने से रोक दिया.मजे कि बात यह हैकि इस चुनाव में उनकी पार्टी के कि भी बड़े नेता ने प्रचार ही नहीं किया,यहाँ तक कि मुख्य मंत्री रोश्य्या ने भी नहीं .यही हाल टी डी पी का रहा .उनके प्रमुख बाबू ने भी प्रचार कि जहमत उठाने कि कोशिस नहीं की,उन्हें लगा की बभाली का मुद्दा उनके लिये राम बाढ़ सिद्ध होगा. लेकी पाशा ही पलट गया ,बभाली मामला उनके गले की हादी बनगया.ते.दे.पे प्रत्याशी ए.नरसा रेड्डी की जमानत ही जब्त हो गई .सभी बारह सीटों पर उनके प्रत्याशी हर गए.उल्लेखनीय है की टी.आर.एस.मुखिया के.चन्द्र शेखर राव अपने चुना अभियान में जुटे रहे उनहन ने बाबू के बभाली अभियान पर जरा सा भी धयान नहीं दिया,साया वह इस बात कों समझ रहे थे की "लक्ष्य ए भटकाव नुकसान पहुंचा सकता है.यह उनका अपना निजी अनुभव भी रहा होगा.इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि यह चुनाव उनके जीवन-मृत्यु का प्रश्न था?अगर एक भी सीट कम आती तो यही कहा जाता कि सम्पूर तेलंगाना पृथक तेलंगाना के पक्ष में नहीं है.यकीन अब किसी कों इस बात में नहीं है कि तेलंगाना की जनता स्वतंत्र राज्य नहीं चाहती.शायद राव साहेब के लिये यह चुनाव एक चुनौती थी जिसे उन्हों ने स्वीकार कर साबित कर दिया की यह चुनाव सत्ता के लिये नहीं था. तभी तो चुनाव की घोषणा के बाद उन्हों ने कह दिया कि जरुरत पड़ी तो उनके विधायक फिर अपनी सदस्यता से इस्तीफा दे सकते हैं.श्री राव का यह भी मानना है कि चुनाव जीतने का मतलब यह नहीं है कि वे चार साल तक विधान सभा में बैठ कर बिताएंगें.तभी तो वह कहते हैं कि "हम विधानसभा क़ी फिर से सदयस्ता प्राप्त करने के लिये चुनाव में नहीं उतारे थे,बल्कि पृथक तेलंगाना क़ी जनभावना कों प्रमाणित करने के लिये मुकाबले में उतरे थे.
इसी लिये उनहोने केंद्र सरकार से मांग क़ी है कि वह इस चुनाव के परिणामों कों जनमत संग्रह कि तरह स्वीकार पृथक राज्य के लिये सीधे लोकसभा में प्रस्ताव पेश करे.इसके साथ ही उनहोने अपने कार्यकर्ताओं कों भी सलाह दी है कि वे बहुत उत्तेजित न हों,क्योंकि इस चुनाव परिणामों ने उनके कंधे पर एक जबरदस्त जिम्मेदारी दल डी है.बात जो भी हो इस चुनाव परिणामों से एक बात तो सिद्ध हो गई है कि तेलंगाना कि जनता अलग राज्य चाहती है ,इस लिये केंद्र सरकार कों तेलंगाना राज्य कि मांग स्वीकार कर लेनी चाहिए.इस उपचुनाव परिणामो से श्री कृष्ण समिति कों भी अब कोई खास मशक्कत करने कि कोई जरुरत नहीं है.समिति चाहे तो 31 दिसंबर के पहले ही अपनी रिपोर्ट सरकार कों सौंप दे.अगर ऐसा नहीं होता है तो तेलंगाना कि जनता एक बार फिर से आन्दोलन के लिय सड़क पर उतर सकती है,किसका परिणाम सन 1968 -69 एवम 2009 के आन्दोलन से कही भयंकर होगा.अब कुल मिला कर इतना तो जरुर कहा जा सकता है कि गेंद अब फिर केंद्र सरकार के पाले में है. परन्तु वह किस तरह खेलती है ,यह देखना होगा.
प्रदीप श्रीवास्तव