शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009


बुरहानपुर के जैनाबाद स्थित आहुखाना,जहाँ पर प्रसव के दोरान मुमताज की मृत्यु हुई थी. 
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दो बार दफनाया गया था मुमताज को

 विश्व के सात आश्र्चार्यों में से एक ,प्रेम का प्रतीक ताजमहल और आगरा आज एक दुसरे के पर्याय बन चुके  हैं.अब ताज भारत का गौरव  ही नहीं अपितु दुनिया का गौरव  बन चूका है.ताजमहल दुनिया की उन 165 एतिहासिक इमारतों में से एक है ,जिसे राष्ट्र  संघ ने विश्व धरोवर की संज्ञा से विभूषित किया है.इस तरह हम  कह सकते हैं की ताज हमारे दिहने का एक बेशकीमती दाँत है,जो सैलानियों एवम विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है.प्रेम के प्रतीक इस खुबसूरत ताज के गर्भ में मुग़ल सम्राट शाहजहाँ की सुंदर प्रेयशी मुमताज महल की यादे सोयी हुई है.जिसका निर्माण शाहजहाँ ने उसकी यद् में करवाया था.कहते हैं कि इसके बनाने में कुल बाईस वर्ष लगे थे,लेकिन  यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि सम्राट शाहजहाँ कि पतनी मुमताज कि न तो आगरा में मोत हुई थी ओर नहीं उसे आगरा में दफनाया गया था.मुमताज महल तो मध्य प्रदेश के एक छोटे जिले बुरहानपुर (पहले खंडवा जिले का एक तहसील था)के जैनाबाद तहसील में मरी थी,जो सूर्य पुत्री ताप्ती नदी के पूर्व में आज भी स्थित है.इतिहासकारों के अनुसार खान जहाँ लोदी ने जब 1631 में विद्रोह का झंडा उठाया था.

तब  शाहजहाँ  अपनी पत्नी (जिसे वह अथाह प्रेम करता था.) मुमताज महल को लेकर लेकर बुरहानपुर चला गया ,उन दिनों मुमताज गर्भवती थी ,पुरे 24 घंटे तक  प्रसव पीड़ा से तड़पते हुवे जीवन-मृत्यु से संघर्ष करती रही . सात जून ,दिन बुधवार सन 1639 कि वह भयानक रात थी,शाहजहाँ अपने कई ईरानी हकीमों एवं वैद्यों के साथ बैठा दीपक कि टिमटिमाती लौ में अपनी पत्नी के चहरे को देखता रहा ,उसी रात मुमताज महल ने एक सुन्दर बच्चे को जन्म दिया ,जो अधिक देर तक जिन्दा नहीं रह सका .थोड़ी देर बाद मुमताज ने भी दम तोड़ दिया.दूसरे दिन गुरुवार कि शाम उसे वहीँ आहुखाना के पाइन बाग में सुपुर्द -ऐ- खाक आर दिया गया .वह ईमारत आज भी उसी जगाह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में खड़ा मुमताज के दर्द को बयां करती है.इतिहासकारों के मुताबिक   मुमताज कि मोत  के बाद शाहजहाँ का मन हरम में नहीं रम सका,कुछ दिनों के भीतर ही उसके  बाल रुई जैसे  सफ़ेद हो गए.वह अर्धविक्षिप्त सा हो गया,वह सफ़ेद कपडे पहनने लगा .

एक दिन उसने मुमताज कि कब्र पर पर हाथ रख कर कसम खाई कि मुमताज तेरी यद् में एक ऐसी ईमारत बनवाऊंगा ,जिसके बराबर कि दुनिया में  दूसरी नहीं होगी. बताते हैं कि शाहजहाँ कि इच्छा थी कि ताप्ती नदी के तट पर ही मुमताज कि स्मृति में एक भव्य ईमारत बने ,जिसकी सानी का दुनिया में दूसरी ईमारत न हो. इसके लिए शाहजहाँ ने ईरान से शिल्पकारों को जैनाबाद बुलवाया .ईरानी शिल्पकारों ने ताप्ती  नदी के का निरिक्षण किया तो पाया कि नदी के किनारे कि काली  मिटटी में पकड़ नहीं है,और आस-पास की जमीं भी दलदली है.दूसरी सबसे बड़ी बाधा ये थी कि तप्ति नदी का प्रवाह तेज होने के कारण जबरदस्त भूमि कटाव था,इस लिए वहां पर ईमारत को खड़ा कर पाना संभव नहीं हो सका उन दिनों भारत  कि राजधानी आगरा थी ,इस लिए शाहजहाँ ने आगरा में ही पत्नी कि यद् में ईमारत बनवाने का मन बनाया .उन दिनों यमुना के तट पर बड़े -बड़े रईसों कि हवेलियाँ थी ,जब हवेलियों  के मालिकों को शाहजहाँ कि इच्छा का पता चला तो वे सभी अपनी-अपनी हवेलियाँ बादशाह को देने कि होड़ लगा दी.इतिहास में इस बात का पता चलता है कि सम्राट शाहजहाँ को राजा जय  सिंह कि अजमेर वाली हवेली पसंद आ गई.सम्राट ने हवेली चुनने  के बाद ईरान ,तुर्की,फ़्रांस एवम  इटली से शिल्पकारों को बुलवाया .कहते हैं कि उस समय वेनिस से प्रसिद्ध सुनार एवम जेरोनियो को बुलवाया गया था शिराज से उस्ताद ईसा आफंदी भी आये ,जिन्होंने ताजमहल कि रुपरेखा तैयार कि थी.उसी के अनुरूप कब्र कि जगाह को तय किया गया .22 सालों के बाद जब प्रेम का प्रतीक ताजमहल बन कर तैयार हो गया तो उसमे मुमताज महल के शव को पुनः दफनाने कि प्रक्रिया शुरू हुई .बुरहानपुर  के जैनाबाद से मुमताज महल के जनाजे को एक विशाल जुलूस के साथ आगरा ले जाया गया और ताजमहल के गर्भगृह में दफना  दिया गया. इस विशाल जुलूस पर इतिहासकारों कि टिप्पणी है कि उस विशाल जुलूस पर इतना खर्च हुआ था कि  जो किल्योपेट्रा के उस एतिहासिक  जुलूस कि याद  दिलाता है जब किल्योपेट्रा अपने देश से एक विशाल समूह के साथ सीज़र के पास गयी थी.

जिसके बारे में इतिहासकारों का कहना है कि उस जुलूस पर उस समय आठ करोड़ रुपये खर्च हुवे थे.ताज के निर्माण के दौरान ही शाहजहाँ के बेटे औरंगजेब ने   उन्हें कैद कर के पास के लालकिले में रख दिया . जहाँ से शाहजहाँ एक खिड़की से निर्माणाधीन   ताजमहल  को चोबीस  घंटे  देखते रहते थे. कहते हैं कि जब तक ताजमहल बन कर तैयार होता ,इसी बीच शाहजहाँ कि मौत हो गई.मौत के पहले शाहजहाँ ने इच्छा जाहिर कि थी कि "उसकी मौत के बाद उसे यमुना नदी के दूसरे छोर पर काले पत्थर से बने एक भव्य ईमारत में दफ़न किया जाए, और दोनों इमारतों को एक पुल से जोड़ दिया जाय",लेकिन उसके पुत्र औरंगजेब ने अपने पिता कि इच्छा पूरी   करने के बजाय ,सफ़ेद संगमरमर के उसी भव्य ईमारत में दफना उसी जगाह दफना दिया,जहाँ पर उसकी माँ यानि मुमताजमहल चिर निद्रा में सोईं हुई थी.उसने दोनों प्रेमियों को आस-पास सुला कर एक इतिहास रच दिया.पाठकों बुहरानपुर पहले मध्य प्रदेश के खंडवा जिले कि एक तहसील हुआ  करती थी ,जिसे हाल ही में जिला बना दिया गया है.यह जिला दिल्ली  -मुंबई रेलमार्ग पर इटारसी-भुसावल के बीच स्थित है ,बुहरानपुर रेलवे स्टेशन भी है ,जहाँ पर लगभग सभी प्रमुख रेल गाड़ियाँ रुकती हैं.बुहरानपुर स्टेसन  से लगभग दस किलोमीटर दूर ,सहर के बीच बहाने वाली ताप्ती नदी  के उस पर  जैनाबाद (फारुकी काल),जो कभी बादशाहों कि शिकारगाह (आहुखाना) हुआ करता था, जिसे दक्षिण  का सूबेदार बनाने के बाद शहजादा दानियाल ,जो शिकार का काफी शोकिन था ,ने इस जगाह को अपने पसंद के अनुरूप महल,हौज ,बाग-बगीचे के बीच नहरों का निर्माण करवाया था.लेकिन ८ अप्रेल १६०५ को मात्र तेईस साल कि उम्र मे सूबेदार कि मौत हो गई,स्थानीय लूग बताते हैं कि इसीके बाद अहुखाना उजड़ने लगा.  स्थानीय वरिष्ठ    पत्रकार मनोज यादव कहतें है कि जहाँगीर के शासन काल में सम्राट अकबर के नौ रतनों में से एक अब्दुल रहीम खानखाना  ने ईरान से खिरनी एवम एनी प्रजतिओं के पोधे मंगवा कर अहुखाना को पुनः ईरानी बाग के रूप में विकसित करवाया.इस बाग का  नाम शाहजहाँ  कि पुत्री आलमआरा  के नाम पर पड़ा.बादशाह नामा के लेखक अब्दुल हामिद  लाहोरी  साहब के मुताबिक शाहजहाँ कि प्रेयसी मुमताज महल कि जब प्रसव के दोरान  मोत हो गई तो उसे यहीं पर स्थाई रूप से दफ़न कर दिया गया था,जिसके लिए आहुखाने के एक बड़े होज को बंद कर के तल घर बनाया गया ,और वहीँ पर मुमताज के जनाजे को छः माह रखने के बाद शाहजहाँ का  बेटा शहजादा सुजा,सुन्नी बेगम व् शाह हाकिम वजीर खान ने मुमताज के शव को लेकर बुहरानपुर के इतवारागेट -दिल्ली दरवाज से होते हुवे आगा ले गए. जहाँ पर यमुना के तट पर स्थित राजा मान सिंह के पोते राजा जाय सिंह के बाग में में बने ताजमहल में सम्राट शाहजहाँ कि प्रेयसी एवम पत्नी मुमताजमहल के जनाजे को दुबारा दफना दिया गया.यह वाही जगाह है जहाँ आज प्रेम का शास्वत प्रतीक ,शाहजहाँ -मुमताज के अमर प्रेम के बखानो को बयां करता हुवा नील गगन के नीचे विश्व के सात अजूबों में से पहला अजूबा जिसे  प्रेम की कहें या फिर पति-पत्नी के अटूट बंधन को, प्रदर्शित करता हुआ विश्व प्रसिद्ध "ताजमहल" खड़ा है.
                                                                                                 प्रदीप श्रीवास्तव

                                                                          आगरा  का ताजमहल
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