रविवार, 3 जुलाई 2011



केरल का पध्नाभास्वामी मंदिर
उगल रहा है अकूत खजाना
केरल के पध्नाभास्वमी मंदिर के तह खाने से सिलसिलेवार निकल रहे अकूत खजाने से पूरे देश मैं सनसनी फैल गई है,कहा जाने लगा है कि अगर इसी तरह मंदिर परिसर के तहखानों से सोने, चांदी ,हीरे जवाहरात निकलते रहे तो यह मंदिर बालाजी तिरुपति मंदिर से भी धनाड्य मंदिर के रूप मैं शामिल हो जाएगा |इन पंक्तियों के लिखे जाने तक वहां से लगभग पचहतर हजार करोड़ की अकूत दौलत निकली जा चुकी थी|जबकि यह सब केवल मंदिर के दो गुफाओं से निकले गए है,अभी पांच गुफाओं की खोजबीन की जानी है| इसे देखते हुए यह कहा जाय कि स्वामी पध्नाभास्वामी का मनिदिर सोना उगल रहा है,तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी| कहते हैं कि इन तहखानो को १८७२ से खोला ही नहीं गया था|मंदिर से निकल रहे खजानों को देखते हुए राज्य सरकार ने वहा कि सुरक्षा बढ़ा दी है
बताया जाता है कि ट्रावनकोर राजाओं ने अंगरेजो से बचने के लिए अपने खजाने इस मंदिर के तहखाने मैं छुपा कर रख दिए थे |जिसे वे इसका उपयोग आकाल जैसी आपदा के समय में करना चाहते थे |मंदिर से अब तक पचास हजार करोड़ के जेवरात के साथ-साथ एक टन सोना तो मिला ही है|वहीँ भगवान विष्णु की सोने की एक मूर्ति मिली है जिस पर हीरे व् जवाहररात जैसे कीमती रत्न जड़ें हैं| जिसकी कीमत अभी तक आंकी नहीं गई है|इसके अलावा शुद्ध सोने की बनी कई आकृतियाँ भी मिली हैं जिका वजन एक-एक किलो है तथा उनकी लम्बाई अठारह फुट है| जबकि सिक्कों और कीमती पत्थरों से भरी कई बोरियां तो है हीं ,साथ ही ३५ किलो वजनी गहने भी मिलें हैं |बताया जा रहा है कि मंदिर में छह तहखाने हैं हैं जिन्हें से लेकर ऍफ़ तक का नाम दिया गया है|अभी केवल तहखाने को ही खोला गया है,जबकि शेष को सोमवार (चार जुलाई) से खोला जाएगा| तहखानों से मिल रही संपत्ति के दस्तावेज सुप्रीमकोर्ट में जमा किये जाएँगे| उसके बाद ही पध्नाभास्वामी मंदिर के खजाने की सही कीमत आंकी जा सकेगी|
संक्षिप्त इतिहास पध्नाभ मंदिर का
भागवान पध्नाभ को केरल के तिरुअनंतपुरम में पारिवारिक देवता के रूप में मन जाता है| इतिहासकारों के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण त्रावणकोर वंश के शासक राजा मार्तंड वर्मा ने अठारहवीं शताब्दी में करवाया था| जिसे भव्य स्थापत्य कला एवम ग्रेनाईट के स्तंभों की लम्बी श्रंखला के लिए जाना जाता है|मंदिर के गर्भगृह में हजार सिर वाले शेषनाग पर लेटी हुई भागवान विष्णु की विशाल प्रतिमा है| उल्लेखनीय है कि लोककथाओं में इस बात का उल्लेख है कि मंदिर की दीवारों एवम तहखानों में राजाओं ने हीरे जवाहरात छिपा दिए थे|स्वतंत्रता के बाद इस मंदिर का कामकाज त्रावणकोर राजघराने के नेतृत्व में बनी एक ट्रस्ट देखती है |जिसके मुखिया राजघराने के मौजूदा उतराधिकारी यू.थिरूनल मार्तंड वर्मा कर रहे हैं ,जो मैनेजिंग ट्रस्टी भी हैं |
खबर लिखे जाने तक मंदिर के तहखानों की तलाशी जारी थी|
                                                                                                           प्रदीप श्रीवास्तव

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