मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

जनसंदेश छोड़ी नहीं, निकला गया था


 विश्वमानव से जनसंदेश होने के बाद का सम्पादकीय परिवार 

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       सही बात है देश कि विश्वमानव से जन सन्देश अख़बार होने के बाद कई परिवर्तन भी हुए थे,होना भी स्वाभाविक प्रक्रिया के तहत था भी जरुरी. अख़बार करनाल से गुड़गांव शिफ्ट हो गया .लगभग सभी कर्मचारी भी वहीँ पहुँच गए ,केवल महिला कर्मियों को छोड़ कर .उनकी कई दिक्कते भी थीं. संपादक जी पंजाब वाले और प्रबन्धक जी भी आ गए. अख़बार छापना भी शुरू हो गया ,यह अलग कि बात है की कुछ दिनों तक वही दिल्ली के बहादुर शाह जफ़र मार्ग से एक दैनिक के यहाँ छपता रहा. एक-दो महीने तक स्टाफ को रहने के लिए नव निर्मित यूथ हास्टल उपलब्ध कराया गया ,स्टाफ को कार्यालय (कापस खेडा )तक लाने -ले जाने के लिए देवी लाल जी का चुनावी रथ मुहैय्या करवा दी गई. चुनाव के इतिहास मैं वह पहला रथ था जिसे बस के ढांचे मैं तैयार किया गया था,बटन दबाव,गेट खुल जाते, दूसरा बटन दबाव आटोमेटिक मंच बस के ऊपर निकल जाता . बहुत मज़ा लिया उस रथ का हम सभी स्टाफ ने.

         यह बताना भूल ही गया उन दिनों मैं फीचर देखता था ,जन सन्देश का पहला अंक विधिवत हरियाणा दिवस पर निकलना था ,संपादक जी के साथ चौटाला जी के पास मैं भी पहुंचा. जो भी बातें हुईं,वह अलग की बात. चंडीगढ़ से दिल्ली एक कर देना पड़ा . हरियाणा दिवस पर पहला अंक आया, फुल साइज़ का 70 पेज का .अब आप कल्पना कर लीजिये उन दिनों की यह हालत थी .केंद्र व राज्य सरकार के विज्ञापनों के आलावा उद्योगों आदि के आलग. केवल इतना ही नहीं एक माह तक हर रोज चार पेज का विज्ञापन का पन्ना अलग से अखबार के साथ बंटता रहा. इसी बिच दोपहर का अख़बार भी इसी के नाम से शुरु हो गया ,आठ पेज का टेबलाईड . उसकी विशेषता यह की वह बाज़ार में कम ,लेकिन दोपहर बाद दिल्ली से उड़ने वाले सभी विमानों में यात्रियों को उपलब्ध. यहीं से जन्संदेश की उलटी गिनती शुरू हो गई.

         इसी बीच दो बड़ी न्युक्तियाँ हुईं ,एक चोटाला जी के शायद बहनोई थे उनके अधिकार मैं पू


रा अख़बार ,दूसरी ग्वालियर के एक बड़े (स्वघोषित) पत्रकार कार्यकारी संपादक हो कर आ गए,जब नए संपादक जी आये तो वह भी अपनी टीम भी लेकर आये. यहीं अख़बार के दिन फिरने लगे .इधर प्रधान संपादक जी ने अपने बेटे को मेरी जगह फीचर संपादक बना दिया.मैं वापस समाचार कक्ष में.

          बस इसी दौरान परिवार वालों ने मेरी शादी तय कर दी ,और मैं लम्बी छुट्टी पर घर चला गया. शादी के जब वापस लोटा ,ऑफिस पहुंचा तो जो दरबान नमस्कार बोलता था ,उसने अन्दर जाने से रोक दिया , कारण पूछने पर गेट पर लगे नोटिस को पढने को कहा . सच उस पर निगाह गई तो मैं चकित रह गया ,निकलेजाने वालों में मेरा नाम दूसरे नंबर पर. कारण पता नहीं,संपादक से मिलने की बात की तो दरबान ने बताया जाखड साहब ने किसी को भी अन्दर जाने से मना किया है. किसी तरह सम्पादक जी बहार आये और सारी बातें बताईं ,छुट्टी पर जाने के बाद से कुछ कर्मचारी किसी बात को लेकर हड़ताल कर दी थी ,जिसके कारण सभी 35 पुराने (जो विश्वनव के थे )कर्मचारियों को निकल दिया गया है. इसके बावजूद संसथान ने मेरा पुराना बकाया वेतन का भुगतान बिना किसी हिचक के कर दिया .मज़े की बात यह है की साल भीतर ही जन सन्देश का प्रकाशन बंद हो गया .



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