मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

बनारस में तीन दिन

 


किसी ने कहा है-

ख़ाक भी जिस जमीं की परस है ,

शहर  मशहूर यह बनारस है .

आज मैं उसी शहर बनारस में हूँ...

काशी,वाराणसी या फिर कहें 'बनारस', जहाँ के लोगों का विश्वास है कि पृथ्वी शेषनाग के फन पर और बनारस बाबा भोलेनाथ के त्रिशूल पर टिकी है. शायद यही कारण है की यहाँ गंगा उत्तरवाहिनी हैं,इस लिए भूकंप नहीं आता.कभी-कभी भगवान शंकर जब त्रिशूल पर पीठ टेक देते हैं ,तब यहाँ की जमीन कुछ हिल जाती है.

अद्भुत है बनारस ,तभी तो कहा जाता है कि बनारस ने जिसे अपना लिया ,वह जीवन भर वहीं  का हो कर रह जाता है. इसी गंगा की गोद में मैं ने अपने जीवन के स्वर्णिम ग्यारह साल बिताये है,यही कारन है कि आज भी बनारस के मोहपाश से छुट नहीं सका हूँ.दसवीं से परास्नातक,पत्रकारिता मैं स्नातक के साथ-साथ आज अख़बार की नौकरी इसी शहर मैं रहकर की है.

बनारस की गलियों का चप्पा-चप्पा साइकिल व पैदल से चलकर छाना है. 1978  की भयंकर बाढ़ की विभीषिका को इन्हीं नंगी आँखों से देखा है. जब नई सड़क तक गंगा नदी का उफान आया था,जहाँ से बचाव कार्य के लिए नावें चलीं थीं , काशी स्टेशन के निकट रेलवे पुल को गंगा का जल स्तर स्पर्श कर गया था.आपातकाल को इसी शहर में रहकर देखा,जयप्रकाश नारायण जी के आंदोलन को ,आरक्षण विरोधी आन्दोलन का इसी शहर में  ही रहकर उसका हिस्सा बना था. कैसे भूल सकता हूँ भगवन शंकर की इस नगरी को. शायद यही कारण है कि न तो मैं और न ही मां गंगा मुझे इस शहर से विसरित नहीं होने देना चाहती हैं.

कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में काफी बदल गया है बनारस . आधुनिकता के आवरण में बनारसीपन की पहचान लुप्त होती जा रही है.बनारस की संस्कृति के साथ खिलवाड़ हो रहा है,इन्हीं को कोरे कागद पर सनद के रूप में समेटने तो आया हूँ 

देश में पहली हड़ताल बनारस में  हुई थी.....

बहुत ही कम ही लोगों को पता होगा कि भारत (हिंदुस्तान)में पहली हड़ताल 24 अगस्त 1790 ई. में बनारस में हुई थी,जिसका कारण था गंदगी . केवल इसी बात के लिए ही नहीं 1809 में जब पहली बार गृह कर लगाया गया ,उस समय बनारसियों ने अपने मकानों में ताला लगा कर मैदानों में जा बैठे थे. इतिहास इस बात का गवाह है कि शारदा बिल , हिंदू कोड बिल,हरिजन मंदिर प्रवेश,गल्ले पर सेल टैक्स एवं गीता कांड पर पहली बार ही बनारस में ही हड़ताले व प्रदर्शन हुए थे. जिसका सीधा सा मतल निकल सकते हैं की बनारसी सदा से आजाद रहे हैं ,उन्हें किसी दखलंदाज़ी पसंद नहीं है.

चलते-चलते दो लाइन ...

चना चबैना गंग जल जो पुरवे  करतार |

काशी कभी न छोड़िए विश्वनाथ दरबार ||


बनारस के बारे में ये दो लाईने बहुत प्रसिद्ध है-

रांड, सांड , सीढ़ी ,सन्यासी

इनसे बचे तो सेवे काशी .

 सच में  बनारस अपने आप में अद्भुत शहर है. शहर में हर चार-पांच दुकानों के बाद आप को एक पण की दुकान मिलेगी .मोहल्लों के मकानों ,गलियों और सड़कों पर पान की पीक ,मानों होली खेली गई हो. बनारस आयें तो लंका का नाम न सुने,यह हो ही नहीं सकता ,अरे बाबा रावन वाली लंका नहीं ,मदन मोहन मालवीय जी वाली लंका,एक मोहल्ले का क्या सड़क का नाम है लंका,जिस पर स्थित है बनारस हिन्दू विश्विद्यालय ,वही लंका . जो शैव के त्रिशूल वाला चौराहा है. कितना अजीब लगता है सुनकर. इस चौराहे से एक सड़क संकट मोचन को जाती है तो दूसरी अस्सी की ओर,जबकि तीसरी सड़क राम नगर की और निकलती है . जो त्रिशूल का आधार दंड है उस पर स्थित है सर्वविद्या की राजधानी बीएचयू .है न अजीब शहर ,जिसे समझाना इतना आसान भी नहीं.



 सुबह-ए-बनारस, 

अवध की शाम 

और मालवा की रात...

  सचमुच बनारस की सुबह को जब आप अपनी नंगी आँखों से देखेंगे , तो उसके सौंदर्य का बोध होगा। न जाने कितने चित्रकारों ने अपने कोरे  कैनवास पर इस विहंगम दृश्य को उतारा होगा। वह दृश्य देखने वाला होता है, जब पश्चिम घाट से पूरब की ओर से शनैः शैनः सूर्य भगवान रेतों के बीच से ऊपर उठते हैं तो पूरी गंगा की धारा सिंदुरिया रंग में बदल जाती है, और उस समय अगर आप नाव पर सवार हैं तो फिर कहना ही क्या।तभी तो कहते हैं बनारस जिसे एक बार आपना लेता है तो जिंदगी भर वह बाबा भोले नाथ की नगरी को छोड़ नहीं पाता ।

   लगभग 30 साल बाद उसी गंगा की अविरल धारा पर नाव पर बैठ गंगा के सूर्योदय के उस विहंगम दृश्य को देख रहा हूं।जिसे मोबाइल में पत्नी कैद कर रही हैं। अद्भुत नजारा होता वह,जिसे हम-आप शब्दों में बयां नहीं कर सकते, केवल आंखों से ही देख सकते हैं ।







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