मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

रोचक प्रसंगों का उल्लेख जरूरी....

 

  जनसंदेश ,गुरुग्राम का सम्पादकीय परिवार 

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   पत्रकारिता में जवानी के दिनों की एक प्रसंग का उल्लेख करना जरूरी समझता हूँ,जिससे आगे के लोगों को पता चले कि तब और आज की पत्रकारिता में कितनी भिन्नता होती थी. जवानी के दिनों का मतलब ,तब तक शादी नहीं हुई थी.घुमक्कड़ प्रवृति का युवा ,जहाँ चाहो लगा दो ...उफ्फ तक नहीं करेगा.

     बरेली वाले नेता एरन जी के अख़बार विश्वमानव के करनाल संस्करण में कार्यरत था,बात 88-89 की है, हरियाणा के मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला होते थे,उनके सर पर अख़बार निकालने का भूत सवार हो गया ,उन्होंने ने विश्वमानव को खरीद लिया,मतलब अख़बार के साथ अख़बार के कर्मचारी भी ,बिक गए. महीने भीतर अख़बार का नाम बदल कर 'जन सन्देश' हो गया.लेकिन एक बात की तारीफ चौटाला जी की करूँगा कि उन्होंने ने कर्मचारियों के साथ अच्छा व्यवहार ही किया,सभी के वेतनों में योग्यतानुसार वृद्धि भी हुई .प्रबंधन मंडल में बदलाव जरुर हुए ,जो स्वाभाविक भी थे. मैनेजर व संपादक भी बदले,संपादक पंजाब से आये ,और मैनेजर वहीँ पास के किसी शहर के थे.मज़े की बात यह थी कि इन दोनों लोगों को पुत्र मोह बहुत था.जिसके लिए कुछ भी कर सकते थे,किया भी. ख़ैर ...

    वह मामला यह था कि हरियाणा में मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला,केंद्र में  खिचड़ी सरकार,उप प्रधानमंत्री देवी लाल जी, हरियाणा में राजनीतिक उठा पटक. सुबह नए संपादक जी का बुलउवा घर पर आया की कार्यालय बुलाया गया है,जल्दी-जल्दी कार्यालय पहुंचा, संपादक जी ने बताया कि चौटाला जी आज शाम को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे रहे हैं ,यह कार्यक्रम कर्नाटक भवन में शाम चार-पांच बजे होगा,उनका आदेश है कि इस खबर को तुम ही कवर करो, आफिस की जीप ले लो और एक बजे तक निकल जाओ ,जिससे समय तक पहुँच जाओ.यह सुनकर घबराहट बहुत हुई ,कभी दिल्ली में इस तरह के किसी बड़े राजनीतिक कार्यक्रम को कवर नहीं किया था,इस लिए अधिक. आफिस ने निकल कर अपने संचार संपादक जी को यह जानकारी दी,तो उन्हों ने न घबड़ाने की हिदायत दी ,और कुछ टिप्स दिए .वही समाचार संपादक जी आज एक बड़े अख़बार के प्रधान संपादक भी हैं.

  ख़ैर साहब दोपहर बाद आफिस की जीप से निकला दिल्ली के लिए ,दुबला-पतला लगभग सात फुट लम्बा ड्राइवर साथ में. रुकते-रुकते लगभग सवा तीन बजे कर्नाटक भवन पहुंचा.जहाँ पर गहमागहमी चरम सीमा पर. पत्रकारों व फोटोग्राफरों का हुजूम (तब टी वी चैनलों की आमद नहीं थी,एक मात्र दूरदर्शन ही हुआ करता था.) प्रेस कांफ्रेंस में उप प्रधानमंत्री देवी लाला जी को भी आना था,सुरक्षा के चाक-चौबंद व्यवस्था.दिल्ली के पत्रकारों को सभी जानते ही रहे होंगे,उनमें दुबला-पतला ,दाड़ी वाला एक युवक मैं . तभी अचानक मेरे पास सादे वर्दी में दो सुरक्षा कर्मी आये और एक किनारे ले जाकर बातचीत करने लगे,पहले तो मैं घबराया,क्योंकि मेरे पास कार्यालय का कोई परिचय पत्र नहीं था,लेकिन उन्ही लोगों ने जब मेरा,मेरे पिता जी का नाम  ,कहाँ से शिक्षा प्राप्त की ,कहाँ -कहाँ नौकरी की आदि-आदि बताया तो मैं अचंभित हो उठा.बाद मैं पता चला की उप प्रधानमंत्री के घर ,एवं चौटाला जी के घर अक्सर आना जाना मेरा रहता था,वह भी अख़बार के काम से ,इसलिए गुप्तचर विभाग ने मेरे बारे में मेरी जन्मभूमि फैजाबाद ,कर्मभूमि बनारस जा कर सारी जानकारी जुटाई थी. प्रेस कांफ्रेंस हुई ,चौटाला जी ने इस्तीफे की घोषणा की . उसके बाद धीरे से चौटाला जी को प्रणाम कर (पत्रकारिता के दृष्टिकोण से यह गलत है,लेकिन आखिर वह मेरे अन्नदाता जो ठहरे.)करनाल के लिए वापस. दूसरे दिन दिल्ली व आस-पास के सभी अख़बारों की  'लीड स्टोरी' थी.

कहने का मतलब पत्रकारिता के क्षेत्र में आप की पहचान आप के संस्थान के साथ-साथ आप के व्यवहार व काम से होती है,न कि परिचय-पत्र से.

चलते-चलते बताता चलूँ कि कुछ दिनों बाद फैजाबाद (आज का अयोध्या) घर गया तो पता चला कि दो लोग कुछ समय पहले आये थे,और मेरे बारे में पता कर रहे थे. तब अम्मा-बाबू को लगा था कि शादी वादी के चक्कर के लिए जानकारी ले रहे होंगे.   

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