मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

36 साल बाद मित्र से मिलना

आप कल्पना करें कि जब आपका कोई मित्र 36 साल के बाद मिले तो आप कैसा महसूस करेंगे। ऐसा ही कुछ हुआ इस बार की बनारस यात्रा में संजय श्रीवास्तव से मिलकर । संजय यद्यपि मेरे मित्र तो नहीं है मेरे छोटे भाई मित्र है लेकिन उनसे मित्रता वैसे ही है जैसे कोई एक मित्र होता है ।विश्वविद्यालय जीवन के दौरान समकक्ष होने के कारण हम लोग काफी घनिष्ठता  थी और शैतानियों की बात ही न पूछिए। जब मैं बनारस आया तो संजय ने फोन कर मिलने की इच्छा जाहिर की और बीती रात अपने घर पर खाने पर निमंत्रित किया। मित्र का आग्रह हो तो टाला कैसे जा सकता है ।हम लोग शाम संजय के घर पहुंचे और कई घंटे बिताए।  मित्रता 80 के दशक की है।यह  वह दौर था जब पेन फ्रेंड्स का दौर पूरे विश्व देश तेजी  में चल रहा था। बातों बातों में पता चला कि संजय की पत्नी रेनू श्रीवास्तव जी भी उस दौरान मेरी पत्र मित्रता की सूची में थी ।फिर जो बातों का सिलसिला चला तो अंत होने का नाम ही नहीं ले रहा था। देर रात संजय और उनकी पत्नी ने हम लोगों को घर तक छोड़ने भी आए। संजय इन दिनों अध्यापन कार्य से मुक्त होकर एक राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल में बनारस ब्यूरो का काम देख रहे हैं। बधाई संजय भाई। चलते चलते बताता चलूं संजय जी के पिताजी भारतीय रेल सेवा में थे,बात 80 के दशक की है ।श्रीलंका में भारत सरकार के सहयोग से रेल पटरी बिछाई जा रही थी ।जिसका पूरा कार्य उन्हीं की देखरेख में हुआ था ।




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