बुधवार, 5 अप्रैल 2023

'माँ सम्मे महारानी' जो करती हैं अपने भक्तों की मुराद पूरी

 मेरे गाँव का मंदिर .....

पहले गोंडा ,अब अयोध्या जनपद में सरयू नदी के उस पर अयोध्या से गोंडा की ओर जाने वाले मार्ग पर नवाब गंज नामक एक छोटा सा बाज़ार पड़ता है,जिसका कुछ भाग अयोध्या तहसील में तो कुछ अभी भी गोंडा जनपद के अंतर्गत आता है . नवाबगंज बाज़ार से लगभग दो किलो मीटर पहले बाएं हाथ पर एक सड़क जाती है ,इसी सड़क पर चार किलोमीटर जाने पर एक गाँव पड़ता है 'नगवा कल्याणपुर'. गाँव के बीच उत्तर दिशा की ओर काले पत्थर से निर्मित एक विशाल प्रवेश द्वार है,जिसके भीतर स्थित है 'माँ सम्मेमहारानी का मंदिर. विशाल पेड़ के नीचे ऊँचे चबूतरे पर स्थित इस मंदिर में दर्शन के लिए केवल आस-पास के ही नहीं विदेशों से भी माँ के भक्त आते हैं. कहते हैं कि इस मंदिर मैं जो भी भक्त माँ से कुछ भी मांगता है तो ,माँ सम्मे महारानी उसकी मनोकामना पूरी जरुर करती हैं.केवल इतना ही नहीं लोग झाड़ फूंक के लिए भी यहाँ आते हैं.उन्हें कितना इसका लाभ मिलता है इसकी कोई जानकारी नहीं है.

 मंदिर लगभग डेढ़ सौ साल पुराना बताया जाता है,लेकिन मंदिर का कोई विधिवत इतिहास उपलब्ध नहीं हैजो भी जानकारी है वह केवल एक दुसरे से सुनी-सुनाई बातों के आधार पर ही. हाँ मंदिर का जीर्णोद्धार सन 2005 में गाँव के लोगों ने मिलकर कराया था. मंदिर परिसर में माँ दुर्गा का भी एक मंदिर है ,जिसकी स्थापना मेरे बड़े पिता जी (ताऊ) स्व हरिहर प्रसाद श्रीवास्तव एवं चाचा स्व दुर्गा प्रसाद श्रीवास्तव जी ने की है. 'माँ सम्मे महारानीहमारे परिवार की कुलदेवी हैं. इस लिए हर साल पूरा परिवार अप्रैल माह की चार तारीख को मंदिर परसर में एकत्र होता है ,पूजा पाठ,हवन के बाद एक विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है.जिसमें पूरा गांव शामिल होता है.जिसका आयोजन छोटे भाई राकेश उर्फ़ पप्पी एवं संदीप की अगुवाई में परिवार के सभी लोग करते हैं.

 हाँ तो मंदिर के इतिहास के बारे में बता रहा था कि  'माँ सम्मे महारानी' के इस मंदिर का कोई लिखित इतिहास नहीं है. जो कुछ गाँव वालों ने बताया उसी के मुताबिक,आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले ब्रिटिश हुकूमत में गाँव के दो लोगों को किसी अपराध के मामले अपराधी घोषित कर दिल्ली की एक जेल में बंदी बना कर भेज दिया गया .जहां पर माँ का एक मंदिर था .दोनों बंदी सगे भाई थे,काफी दिन गुजर जाने के बाद किसी भाई को एक रात देवी ने सपने में दर्शन दे कर कहा कि मंदिर में माँ के दर्शन के साथ उनसे सज़ा मुक्ति की याचना करोजब तुम्हें यहाँ से मुक्ति मिल जाए तो जाते समय मंदिर से थोड़ी मिटटी ले जा कर अपने गाँव में मुझे स्थापित कर देना.. कहते हैं कि ऐसा करने के बाद कुछ ही दिनों में दोनों भाई ब्रिटिश हुकूमत से निर्दोष करार दिए गए .जिसके बाद उन्हों ने सपने माँ के द्वारा दिए गए आदेश का पालन करते हुए जब वापस अपने गाँव 'नगवा कल्याणपुरलौटे तो गाँव के उत्तर दिशा बाग़ में माँ की स्थापना कर दी ,जिनका नाम 'माँ सम्मे महारानी' पड़ गया .एक ऊँचे जबुतारे पर स्थित इस मंदिर के नाम के पीछे की जानकारी किसी भी गांव वालों के पास नहीं है. हाँ इतना जरूर गावं वालों का कहना है कि इस मंदिर में आप 'माँ सम्मे महारानीसे जो भी याचना करते हैं ,माँ उसे पूरा अवश्य करती हैं. मंदिर के प्रवेश द्वार पर पवन पुत्र हनुमान जी की बैठी प्रतिमा स्थापित है ,जो भक्तों की रक्षा करते हैं .मंदिर परिसर लोगों को आकर्षित करता है. आये दिन इस मंदिर परिसर भागवत कथा के साथ विभिन्न धार्मिक आयोजन भी होते रहते हैं. जब कभी आप उधर से गुजरे तो 'माँ सम्मे महारानीका दर्शन जरूर करें.   


 

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