मंगलवार, 16 मई 2023

अवध की हिंदी पत्रकारिता के पितामह थे बाबू शीतला सिंह

 


प्रदीप श्रीवास्तव 

फैजाबाद अब अयोध्या से सहकारिता पर आधारित हिंदी दैनिक जनमोर्चा के संस्थापक संपादक बाबू शीतला सिंह जी  आज दोपहर बाद जिला चिकित्सालय में बीमारी से जूझते हुए उस जहां चले गए ,जहां से आज तक कोई लौट कर नहीं आया है. 94 वर्ष के थे बाबूजी . जनमोर्चा वही अख़बार है जिससे अख़बार पढ़ने की ललक बचपन में पड़ी .शायद छठवीं में पढता रहा हूँगा,घर के पास रिकाबगंज-चौक रोड पर एक मैकू नामक हलवाई की दुकान होती थी(अभी भी है),वहीँ पर जनमोर्चा आता था तब छोटे आकार में निकलता था जिसे टैबलाइड कहते हैं ,जहाँ तक याद आ रहा है कि तब उसकी कीमत दस नए पैसे होती थी. वहीँ अख़बार पढ़ने सुबह पहुच जाता था. जब बड़ा हुआ तो उसकी लत इतनी लग गई कि उसमें संपादक के नाम पत्र लिखने लगा. सन 76 के बाद तो बनारस से प्रतिनिधि के रूप में जुड़ गया.नहीं तो कम से कम सौ से अधिक रचनाये,रिपोर्ट तो छपी ही होंगी जनमोर्चा.इस दौरान बाबू शीतला सिंह जी का मुझ पर बहुत स्नेह भी रहा,यद्यपि मैं ने जनमोर्चा में नौकरी तो नहीं की ,लेकिन लगाव बना ही रहा बाबू जी का .

   लगाव के दो कारण और भी थे,लेखनी को छोड़कर ,पहला बाबू जी का  घर मेरे छोटे नाना जी के घर के समीप ही है,जहन से आना जाना निरंतर रहा,दूसरा मेरे बड़े फूफा जी बाबू त्रिभुवन दत्त जनमोर्चा के अकाउंट विभाग में विशेष पद पर थे.

   सन 1996 की बाद है ,मैं औरंगाबाद के एक अख़बार में कम कर रहा था. एक दिन अचानक दोपहर में अख़बार के प्रबंधक के केबिन में फोन की घंटी बजी,बात करने के लिए मुझे बुलाया गया,दूसरी तरफ से  उस  समय  के बनारस के  सर्वाधिक लोकप्रिय सांध्य दैनिक 'गांडीव'के संपादक राजीव अरोड़ा जी की आवाज़ थी कि 'प्रदीप ,बनारस में उपजा का वार्षिक सम्मलेन हो रहा है,आप को हर हालत में आना है. में अभी कुछ बोल पता कि राजीव भैया ने कहा कि बाबू शीतला सिंह जी ने तुम्हे बोलने के लिए कहा है.बस आना है.

   समय पर बनारस पहुंचा,ट्रेन लेट हो गई थी,सीधे नगरी नाटक मंडली प्रेक्षागृह पहुँच गया .कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे तत्कालीन राज्यपाल महामहिम मोती लाल वोहरा जी.इसी बीच प्रदेश के पत्रकारों के सम्मान का सिलसिला शुरू हुआ,तभी अचानक मेरे नाम की घोषणा कर दी गई,जिसे सुनकर तो मैं भौचक्का रह गया ,तभी मंच पर बैठे बाबू शीतला सिंह जी  जी ने मुझे देख लिया और मंच पर आने का ईशारा किया.

  इस बीच जब भी फैजाबाद जाता तो बाबू जी के दर्शन करने उनके ऑफिस जरुर जाता,घंटों बाते करते.हाल ही में लखनऊ जनमोर्चा के वर्धापन दिन पर आये थे. मुलाकात हुई थी,बहुत बीमार थे ,फिर भी किसी तरह वह आये,शायद उन्हें पता था की उनके हाथों रोपा गया पत्रकारिता का यह पौधा 'जनमोर्चा ,लखनऊ उनकी अंतिम वाणी सुनने के लिए बेचैन है. पिछले साल नहीं आ पाए थे.

    वह बताते थे कि उन्होंने सहकारिता के आधार पर उस समय मात्र 75 रुपये की राशि से 'जनमोर्चा' को शुरू किया था.देश का यह पहला अख़बार है जो 70 साल से निरंतर निकल रहा है.जब से खबर मिली है बाबू जी के चले जाने से  ,मन व्याकुल है ,पर विधि के विधान को कोई टाल तो सका नहीं है,उम्र भी हो गई थी ,यही कहकर संतोष करना पड़ेगा .नमन बाबू जी  . 

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