'ये, मूंह और मसूर की दाल' यह कहावत आप सब ने बहुत सुनी होगी .जिसका सीधा सा मतलब कि 'मसूर' की दाल का महंगा होना ,जब महंगा होगा तो उसका 'ओहदा' भी ऊँचा ही होगा .लेकिन अवध में शाकाहारी खाने में 'अरहर' की 'दाल' को 'दालों की महारानी ' कहा जाता है.जब कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 'अरहर की दाल 'की जरा सी भी पूछ नहीं है .दक्षिण भारत की बात ही छोड़ दीजिये ,वहां तो इसकी बात करना मतलब की हिंदी की बात करना है. वैसे तो दाल बहुत सी हैं. मूंग की दाल (छिलके वाली एवं बिना छिलके वाली),उर्द की दाल (जिसमें धोई ,मतलब बिना छिलकों वाली) ,चने की दाल लेकिन अरहर की दाल की बात ही कुछ अलग और निराली सी है. क्योंकि रोज खाने पर भी इससे मन नहीं भरता .इसके आगे छप्पन भोग भी फेल है. अंग्रेजीदां वाले व उनके बच्चे इसे 'यलो दाल' बोलते हैं ,वहीँ कुछ नासमझ लोग इसे 'पीली दाल भी कहने में जरा सा भी नहीं हिचकते.
अरहर की दाल के बारे
में एक किस्सा मशहूर है कि 'अपनी
पहेलियों व मुकरियों के लिए लोकप्रिय अमीर ख़ुसरो साहब एक बार अवध आये तो अवध की महिलाओं
ने उनसे एक पहेली बुझने को दे दिया,लेकिन
जनाब अमीर ख़ुसरो उस पहेली को बुझ नहीं सके .वह पहेली थी ...
सुन्दर पीली
छरहरी,काली केहरी
रंग
,
ग्यारह देवर
छोड़ के चली जेठ के संग.
आज तो यह दाल प्रेशर कुकर में ही पकाई जाती है,लेकिन कभी यह दाल बटुली या हंडे में ही पकती थी
.पकने के बाद देशी घी में जीरा,लहसुन सुखी लाल मिर्च एवं हींग डाल कर छौंकी जाती . छौंक लगाते ही बटुली का ढक्कन बंद कर दिया जाता ,ताकि उसकी सुगंध दाल में जज्ब हो जाये. अरहर की दाल में जब
खटाई डाली जाती तो उसके स्वाद का कोई मुकाबला नहीं होता ,जो मज़ा खटाई से आती है वह नीबू के रस
के मिलाने से नहीं मिलती .खटाई के डालने से अरहर की दाल गाढ़ी हो जाती है,फिर इसे जब कटोरी में परोसा जाता तो वह
रबड़ी सी महसूस होती है. उस पर एक चम्मच जामुन या गन्ने का सिरका मिला दें तो,जनाब क्या कहने का.पेट भर जायेगा ,लेकिन मन नहीं .
लेकिन हमारे अवध में मांगलिक कार्यों
में अरहर की दाल कहीं नहीं टिकती ,उस दौरान उड़द और चने के दाल की बहार सी आ जाती है.
दक्षिण भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय 'सांबर' में इसी अरहर की दाल का ही प्रयोग होता है. पिछले
कुछ वर्षों में इस देवतुल्य दाल में टमाटर,प्याज और दुसरे अनाप-सनाप जिचों के मिलाने का सिलसिला चल पड़ा है,यहं तक कि लोग-बाग अब पनीर के छोटे-छोटे टुकड़े भी डालने लगे हैं .अरे भाई यह
दाल है सब्जी नहीं ,जो चाहा मिला दिया.
चलते-चलते बताता चलूँ कि कितनी भी दालें हों,लेकिन एक मात्र अरहर की दाल ही है ,जिसका 'दूल्हा' भी है,जिसे शकाहारी भी बड़े चाव से खाते हैं. उसके लिए बहुत
कुछ नहीं करना पड़ता है. बस गेहूं के आटे की लोई में अजवायन,जीरा,पीसी मिर्च हिंग,हल्दी एवं स्वादानुसार नमक मिलाकर सान लेते हैं.
फिर उसको रोटी की तरह छोटे-छोटे बेल कर,पके दाल में डाल कर फिर से पका लेते और छौंक मेहमान के सामने परोस देते . तभी तो अवध मैं यह
कहा जाता है कि ....
दाल अरहर की,खटाई आम की ,
तोला भर घी,रसोई राम की.
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