हमारा एक छोटा सा अंचल है अयोध्या जो कभी फैजाबाद का छोटा सा अंग हुआ करता था. अब अयोध्या के नाम से जाना जाता है . अयोध्या जिसके विभिन्न नाम थे ,जैसे अयोध्या, अवधपुरी, राम की नगरी, वैभव की नगरी आदि. तभी तो तुलसीदास जी ने श्री राम चरित मानस के अयोध्या कांड में लिखते हैं कि-
कहीं न जाई कछु नगर विभूति,
जनु एतनिअ विरंची करतूती |
(जिसका भावार्थ है कि 'नगर का एश्वर्य कुछ कहा नहीं जाता ,ऐसा दिख पड़ता है कि मनो ब्रह्मा जी की कारीगिरी बस इतनी ही है.इससे परे संसार में कुछ भी नहीं है .)
आचार्य केशव के शब्दों में देखिये-
अति चंचल जहं चल दले ,
विधवा बनी न नारी|
हिंदू परम्परा के अनुसार अयोध्या वह पहली नगरी है जिस पर ब्रह्मा ने अपना आसन जमाया . उन्होंने मनु से कहा कि इसे अपनी राजधानी बनाओ. यह सभी को मालूम है कि ब्रह्मा की उत्पत्ति कमल से हुई .वह एक हज़ार वर्ष तक अपने सृष्टा की आराधना में लीन रहे. उनकी इस घोर तपस्या से नारायण हिल उठे ,ख़ुशी के मारे उनके गलों पर अशुओं की कुछ बुँदे ढुलक पड़ीं.जिसे ब्रह्मा जी ने तत्काल अपनी हथेली पर लेकर कमंडल में संजो लिया. जब मनु ने राजसिंहासन सम्हाला और अयोध्या को अपनी राजधानी बनाई तो उनके पुत्र ने ब्रह्मा जी से याचना की कि 'प्रभु अयोध्या को एक नदी से विभूषित करें'. ब्रह्मा जी उनसे प्रसन्न तो थे ही .उन्होंने कमंडल में संजोकर रखे अश्रुओं के इन बूंदों को अयोध्या की पवन भूमि पर बिखेर दिया ,इस तरह पतित पावनी सरयू का इस पृथ्वी पर आगमन हुआ .
देख लो, साकेत नगरी है यही,
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।
केतु-पट अंचल-सदृश हैं उड़ रहे,
कनक-कलशों पर अमर-दृग जुड़ रहे।
सोहती हैं विविध-शालाएँ बड़ी;
छत उठाए भित्तियाँ चित्रित खड़ी।
गेहियों के चारु-चरितों की लड़ी,
छोड़ती है छाप, जो उन पर पड़ी!
स्वच्छ, सुंदर और विस्तृत घर बनें,
इंद्रधनुषाकार तोरण हैं तनें।
देव-दंपति अट्ट देख सराहते;
उतर कर विश्राम करना चाहते।
फूल-फल कर, फैल कर जो हैं बढ़ी,
दीर्घ छज्जों पर विविध बेलें चढ़ीं।
कहते हैं कि अयोध्या कई बार उजड़ी,फिर बसी. हिन्दुओं का पवित्र धाम,जिसे तीर्थ भी कह सकते हैं , मर्यादा पुरषोत्तम भगवन की जन्म स्थली .जिसे फिर से सजाया संवारा जा रहा है. सजाने-संवारने के चक्कर में अयोध्या के पुरातन स्वरूप के साथ खिलवाड़ हो रहा है.जिस रूप के लिए अयोध्या को जाना जाता था,उसे नष्ट कर नई अयोध्या को बसाया जा रहा है. जिसके आधुनिकीकरण के नाम पर नए घाट से लेकर श्री राम जन्मभूमि तक के प्राचीन इमारतों,मंदिरों को ढहा दिया गया.
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