शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022

रजनी के आगोश में सिमटा 'चारबाग स्टेशन' का सौन्दर्य




हते हैं कि एक समय था जब पश्चिम में सूर्यास्त होता तो अवध (लखनऊ)की शाम तवायफों के नृत्य एवं पुराने शहर की गलियां लजीज़ व्यंजनों की खुशबु से गुलज़ार हो उठती. समय बदला ,नवाबी काल गया , अंग्रजों ने हुकूमत संभाली ब्रिटिशों ने तो हज़रतगंज को तवज्जो दी . अंग्रेज गए,एक नए लखनऊ ने जन्म लिया .समय के साथ बहुत कुछ बदल गया.रह गईं नवाबों की गुम्बद व मीनारों वाली ऐतिहासिक धरोहरें . इन सबके साथ ब्रिटिश हुकूमत द्वारा बनवाई गई चारबाग रेलवे स्टेशन ,जिसे स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना कहा जाता है. चारबाग स्टेशन का नक्शा बनाया था उस समय के प्रसिद्ध वास्तुकार जे.एच. हर्नी मैन ने. बिशप जॉर्ज ने मार्च 1914 को इसकी बुनियाद रखी थी,जो 1923 में बनकर तैयार हुआ था. मतलब पूरे 9 साल लगे थे.उस समय इस स्टेशन के निर्माण पर 70 लाख का खर्च आया था. जहाँ पर आज चारबाग स्टेशन खड़ा है,यह जगह कभी मुन्नवर बाग़ के नाम से जाना जाता था.
चारबाग स्टेशन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि स्टेशन भवन के बहार ट्रेनों के संचालन एवं यात्रियों के शोरगुल की आवाज़ तनिक भी नहीं आती है. वहीं दूसरी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि स्टेशन परिसर में प्लेट फार्म नंबर तीन पर ऊपर से देखने पर भवन के ऊपर छतरीनुमा छोटे - बड़े गुम्बद शतरंज की बिछी बिसात की तरह लगते हैं .
स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष में चारबाग स्टेशन का सौन्दर्य देखते बनता है ,विशेषकर रजनी के आगोश में. पश्चिम में सूर्यास्त के साथ ही पूरा स्टेशन परिसर कृत्रिम प्रकाश से जगमगा उठता है,फिर पल-पल में बदलते रंग मन को मोह लेते हैं. जब आप इस पल को अपनी नंगी आखों से देखेंगे तो ही उस सुखद अनुभव को जी सकेंगे.
दो दिन पहले बिटिया को छोड़ने स्टेशन गया था ,जब गया था तो शाम हो रही थी ,लेकिन स्टेशन से बाहर निकला तो रात हो गई ,मतलब अपनी पुरानी परम्परा के अनुसार ट्रेन लेट हो गई. पत्रकारिता का कीड़ा और फोटो खींचने की ललक के चलते अपने को रोक नहीं सका.साधारण से मोबाइल में उन लम्हों को संजो लिया आप के लिए.

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