मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

कंक्रीट के जंगल में तब्दील होती "मसूरी"

 

     हिमालय की तराई में स्थित देहरादून से लगभग 24 किलोमीटर दूर एवं समुद्र तल से 6500 फीट की ऊंचाई पर बसा है 'मसूरी'। मसूरी जो पूरे साल ठंडा रहने वाला एक पहाड़ी कस्बा। जो अब शहर में तब्दील होने की राह पर है। कहते हैं इस क्षेत्र में कभी बड़े पैमाने पर मन्सूर के पौधे उगते थे , इसीलिए से पहले 'मन्सूरी' और बाद में 'मसूरी' कहा जाने लगा । यह  कस्बा 1823 से पहले एक निर्जन पहाड़ी हुआ करता था ।1827 में 'मसूरी' कस्बे की खोज कैप्टन यंग ने की थी ।जिन्होंने इसकी सुंदरता से प्रभावित होकर यहीं पर बसने का मन बना लिया।

इसी 'मसूरी' शहर में एक समय था जब शहर के माल रोड पर भारतीयों की आवाजाही पर अंग्रेजी हुकूमत ने प्रतिबंध लगा रखा था। जिसके लिए शिलापट्ट  लगा रखे थे। कि जिस पर लिखा था पर इंडियन एवं डालों  का आना अलाउड नहीं है । लेकिन स्वतंत्रता के 75 साल बाद इसी माल रोड पर 'अंग्रेज ऐसे गायब हो गए' "जैसे गधे के सर से सिंग। मजे की बात तो यह है कि अंग्रेज तो नहीं दिखते  लेकिन भारतीय कुत्तों की एक हुजूम देखी जा सकती है ।हां जिसे हम कह सकते हैं कि यह कुत्ते विदेशी नस्ल के कुत्तों की तरह ही है, 'माल रोड' पर । माल रोड पर किधर भी निकल जाएं तो आपको इस इन कुत्तों से सामना करना ही पड़ेगा, लेकिन ये  आपको नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।मसूरी के माल रोड की संरचना बिल्कुल नैनीताल के माल रोड की तरह ही है।  जिसका निर्माण ब्रिटिश हुकूमत के अधिकारियों ने कराया था। 

  मसूरी में मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू गर्मियों में ठंड ठंडी बयार लेने आया करते थे। महात्मा गांधी ने दो बार इसी मसूरी शहर की यात्रा की थी। पहली यात्रा उन्होंने 1929 में और दूसरी यात्रा स्वतंत्रता से ठीक एक साल पहले 1946 में । तब महात्मा गांधी ने मसूरी के सौंदर्य को देखकर लिखा था।"यहां आ कर मैं अपने सभी दुख दर्द भूल जाता हूं । सच मसूरी सौंदर्य प्रेमियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है। चलते चलते यह भी बताता चलूं मसूरी मे "हैप्पी वैली" नामक एक जगह है ।जहां पर 1959 में चीन  के अधिकृत तिब्बत से निर्वाचित होने पर दलाई लामा ने यहीं पर अपनी पहली सरकार बनाई थी।लेकिन किन्हीं कारणों से बाद में हिमाचल के कांगडा शहर के धर्मशाला  में स्थापित हो गई ।

 मसूरी में एक जगह है लाल टिब्बा  जहां सी दूरबीन से अगर मौसम साफ रहे तो एवरेस्ट की चोटियां दिखाई देती हैं और साथ ही बद्रीनाथ व केदारनाथ के दर्शन भी हो जाते हैं। पर अब मसूरी बदल रही है।जगह जगह कंक्रीट के जंगल उभर रहे हैं जिसके चलते मसूरी के सौंदर्य में काल के ग्रहण लग रहे हैं। पर्यटक तो बहुत आते हैं, हो सकता है उत्तराखंड पर्यटन विभाग के राजस्व का एक बड़ा भाग यहां से मिलता हो ।लेकिन पर्यटकों के लिए कोई विशेष सुविधाएं न तो पर्यटन विभाग और न ही राज्य सरकार उपलब्ध करवा रही है। देहरादून से मसूरी के लिए राज्य परिवहन निगम की बसें न के बराबर  चल रही है जिसके  कारण टैक्सी वालों की लूटमार मची हुई है। अगर इस ओर  थोड़ा सा ध्यान दिया जाए तो मसूरी आने वाले पर्यटकों की संख्या में और इजाफा हो सकता है ।

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