मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

पत्रकार का कार्ड चाहिए,पर पत्रकारिता नहीं करनी

     अपने चालीस साल की पत्रकारिता में मैं  कभी प्रेस के 'आई कार्ड' के लिए व्याकुल नहीं रहा ,बहुत से अख़बारों में काम किया जिसका आई कार्ड कैसा होता है ,यह आज तक नहीं जान सका.दैनिक आज से डेस्क पर काम शुरू किया था,लेकिन आज तक नहीं मालूम की उसका आई कार्ड किस रंग का था.कभी आवश्यकता ही नहीं पड़ी और अपने प्रभारी से पूछने तक की हिम्मत ही. विश्वमानव (सहारनपुर/करनाल ),उत्तरकाल(गुवाहाटी,असाम),जनसंदेश(दिल्ली,गुड़गाँव)सहित बहुत सी पत्र-पत्रिकाओं का संवाददाता /प्रतिनिधि भी रहा पर कभी किसी से आई कार्ड की मांग नहीं की और न ही किसी ने दिया.इसे आप मेरी मुर्खता समझ सकते हैं. क्यों कि पत्रकारिता के क्षेत्र मैं आप की पहचान आप के संस्थान से तो होती ही है और साथ होती है आप के काम से.आप का काम ही आप का नाम होता है ,जिसके लिए किसी आई कार्ड की जरुरत नहीं होती है.

   यह बात इस लिए कह रहा हूँ कि आज लोग ,विशेषकर युवा पत्रकारिता के लिए व्याकुल रहते हैं,लेकिन उन्हें पत्रकारिता का 'क,ख,ग' तक नहीं पता होता .लेकिन उनके गले में लाल,नीली या पीली पट्टी में फंसा एक कार्ड जरुर लटकता दिखाई देगा.इसका गत पांच वर्षों में मैं ने अनुभव किया है. इन पांच सालों में 'प्रणाम पर्यटन' एवं उसकी सहयोगी समाचार पत्रिका 'वसुंधरा पोस्ट' के लिए पचास अधिक पत्रकारों को परिचय-पत्र जारी किया होगा ,लेकिन इन पचास में से मात्र दो-चार सहयोगी ही ऐसे मिले जिन्हें पत्रकारिता की समझ है, इनमें महिला पत्रकारों व सहयोगियों पर अधिक विश्वास किया जा सकता है.कारण वह ईमानदारी के साथ अपने दायित्व का निर्वाह करती हैं. उनकी लेखनी पर विश्वास किया जा सकता है.

        आज पत्रकारिता मिशन नहीं व्यवसाय बन चुका है,इस लिए मिशन की बात की ही नहीं जानी चाहिए.मज़े की बात यह है कि लघु पात्र-पत्रिकाएं ही सबसे अधिक 'पत्रकार'होने का 'प्रमाण पत्र' का सर्टिफिकेट यानि आई कार्ड बांटती हैं,इसके पीछे  क्या कारण है ? यह इससे जुड़े सभी को मालूम है.मुझे कुछ कहने की जरुरत नहीं है.

  अधिक बातें न करते हुए सीधी सी बात कहता हूँ की जिन लोगों को (कुछ लोग को छोड़कर)अबतक  'प्रणाम पर्यटन' एवं वसुंधरा पोस्ट' का आई कार्ड प्राप्त है, उनकी अंतिम तिथि से स्वयम निरस्त हो जायेगा .नवीनीकरण की प्रक्रिया संभव नहीं होगी. इसी के साथ सभी को प्रणाम)


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