बुधवार, 29 जून 2022

बात निज़ामाबाद-धर्माबाद के बीच बड़ी रेल लाइन की


 बात शिवसेना की ,सन 2003 की बात होगी ,मैं औरंगाबाद से आंध्र प्रदेश (तब तेलंगाना नहीं बना था)के एक हिंदी दैनिक में निज़ामाबाद संस्करण का प्रभारी बन कर आ गया था. उन दिनों आन्ध्र प्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र में दो गतिविधियाँ चरम पर थी,पहली पूरे प्रदेश में नक्सली एवं दूसरी हैदराबाद से धर्माबाद (मराठवाड़ा का अंतिम रेलवे स्टेशन जो तेलंगाना के बासर क्षेत्र को जोड़ता है) के बीच छोटी लाईन  से बड़ी लाईन में परिवर्तन का. इधर हैदराबाद से निज़ामाबाद तक बड़ी लाईन पूरी हो चुकी थी ,उधर मनमाड से धर्माबाद तक. काम रह गया था केवल धर्माबाद से निज़ामाबाद (लगभग साठ किलोमीटर) तक का.

धर्माबाद के लोगों की मांग थी नांदेड से मुंबई के बीच चलने वाली देवगिरी एक्सप्रेस को धर्माबाद से चलाई जाये,क्यों की उन्हें इस बात की शंका थी बड़ी लाईन का काम पूरी होते ही यह गाड़ी सिकंदराबाद से चलने लगेगी ,जो आज चल भी रही है .जिसके एवज में रेल मंत्रालय ने नांदेड से मुम्बई के बीच चलने वाली मराठवाडा एक्सप्रेस को धर्माबाद तक से परिचालन किया ,यथावत परिचालन जारी है भी.

हाँ ,धर्माबाद से निज़ामाबाद के बीच बड़ी लाईन का काम  दक्षिण-मध्य रेलवे को इस लिए रोकना पड़ा कि धर्माबाद में शिव सैनिकों स्लीपर से लादे सैकड़ों ट्रक को वहीँ पर रोक लिया था.यह बात दोनों जिलों (नांदेड एवं निज़ामाबाद)के प्रशासन के लिए गले की फांस बन गया था.मामला शिव -सैनिकों का था. दोनों जिलों के प्रशासनिक मुखिया से कहा गया कि यदि इस मामले मैं मैं मध्यस्थता करूँ तो शायद कोई समाधान निकल सके.इसके लिए मुझसे संपर्क किया गया. हर तरह के सहयोग का आश्वासन भी.

दूसरे दिन निज़ामाबाद के एक उधोगपति के सहयोग से प्रेस प्रतिनिधियों का एक दल लेकर धर्माबाद पहुंचा,इस बीच मेरे अख़बार के संवाददाता ने यह जानकारी वहां के शिव सैनिकों को पहले ही दे दी थी,जब आंध्र प्रदेश के प्रेस प्रतिनिधियों का दल धर्माबाद रेलवे स्टेशन पहुंचा तो देखा कि वहां पर लाठियों-डंडों के साथ-साथ अन्य हथियारों से लैस करीब तीन से चार सौ शिवसैनिकों का जमावड़ा पहले से ही मौजूद थाआन्ध्र प्रदेश से गए पत्रकारों की यह देख हालत ख़राब,कब क्या हो जाये किसी को पता नहीं . उधर रेलवे स्टेशन पर स्थानीय लोगों का क्रमिक अनशन चल ही रहा था,जिसमें हर वर्ग के लोग शामिल थे.

 आन्ध्र प्रदेश के पत्रकारों को देख शिव सैनिकों का गुस्सा सातवें आसमान पर,वापस जाओ के नारे लग रहे थे. इसी बीच सामने से मुझे धर्माबाद नगर पालिका अध्यक्ष एवं शिव सेना के तहसील प्रमुख सुरेन्द्र बेलकोंणीकर आते दिखे ,में वहां से निकला ही था की उन्होंने ने मुझे देख लिया ,और मेरे पास आये,और गले लगा लिया,यह देख उत्तेजित शिव सैनिकों को आश्चर्य हुआ,इसी बीच  नारे बाज़ी भी बंद होगी ,सुरेन्द्र के साथ हम सभी नगर पालिका में उनके चेंबर मे गए और स्लीपर के मुद्दे पर बात शुरू हुई ,वह ट्रकों को छोड़ने के लिए राज़ी नहीं थे. इसी बीच इस मामले को लेकर दक्षिण मध्य रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ-साथ दोनों जिलों के कलेक्टर से बात करवाई गई. जिसमें उनकी कुछ शर्तें भी थीं,जिस पर सहमति बनी और सुरेन्द्र बेलकोंणीकर ने ट्रकों को रिलीज़ करने का आश्वासन दिए. लगभग छह माह में धर्माबाद निज़ामाबाद के बीच बड़ी लाईन का कार्य पूरा हुआ,जिस पर आज दर्जनों गाड़ियाँ देश के कई प्रमुख शहरों के लिए दौड़ रही हैं. 

मैं और शिवसैनिक से संबंध

एक समय था पूरे महाराष्ट्र में शिवसेना की तूती बोलती थीबिना 'मातोश्रीके ईशारे पर पूरे प्रदेश में कुछ भी संभव नहीं थाबाला साहब कभी भी अपने मातोश्री से बहार नहीं निकले,लेकिन उनके इशारे पर ही (किसी की भी सरकार रही हो )सरकार चलती थी ,इससे कोई भी इंकार नहीं कर सकता. मैं ने सन 1992 से 2012 यानी बीस साल तक शिव सेना को ,कि गतिविधियों को बहुत निकट से देखा है.मराठवाडा के छोटे बड़े सभी शिवसैनिकों का साथ भी मिला.1993 में मराठवाडा विश्वविध्यालय के नामांतरण का प्रत्यक्षदर्शी गवाह रहा ,जब देर रात मराठवाड़ा विश्वविध्यालय का नाम बदल कर 'डॉ भीमराव आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविध्यालयकिया गया था. जिसका विरोध पुरजोर से सथानीय लोग कर रहे थे.उस रात उसी विश्वविध्यालय के मुख्य गेट पर मैं और पूर्व कांग्रेसी सांसद (जो उन दिनों बालासाहब के काफी निकट के तो थे ही ,साथ ही शिवसेना के मुखपत्र 'दोपहर का सामनाके संपादक भी थे) संजय निरुपम भी बदलते इतिहास को अपनी नंगी आँखों से देख रहे थे,उसी वक्त मराठी सामना के संपादक संजय राउत (संसद तो हैं ही ,जिनकी चर्चा जोरो पर है )औरंगाबाद के सामना कार्यालय में इस गतिविधियों पर अपनी नज़र गढ़ाए हुए थे.सौभाग्यशाली हूँ कि बालासाहब से मिलाने का भी अवसर मिला. ख़ैर इस पर चर्चा फिर कभी ...

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