बहुगुणा जी के ठीक पीछे दाढ़ी व चश्में में मैं । |
हेमवती नंदन बहुगुणा के साथ दस मिनट की रेल यात्रा
डॉ प्रदीप श्रीवास्तव
बात सन 1987 की है ,उन दिनो मैं आगरा के एक हिन्दी दैनिक में कार्यरत था, शाम का समय यही कोई सात बजे होंगे,तभी हमारे समाचार संपादक जी ने मुझे अपने पास बुलवाया और निर्देश दिया कि अभी नौ बजे की गाड़ी से हेमवती नंदन बहुगुणा जी भोपाल जा रहे हैं ,तुम उनसे मिल कर एक छोटी सी बातचीत कर लो ,साथ में फोटोग्राफर भी रहेगा। आदेश मिलते ही हम लोग आगरा के 'राजा की मंडी' स्टेशन पहुंचे । तय हुआ कि किसी तरह उस डिब्बे में प्रवेश कर लिया जाए और उनके साथ वहाँ से 'आगरा कैंट' तक चला जाएगा। क्यों की इस बीच की दूरी को तय करने में गाड़ी को लगभग दस मिनिट तो लग जाएगा। बस इसी दौरान उनस जो भी बात हो सकेगी ,वह पर्याप्त होगी। गाड़ी स्टेशन पर पहुंची ,बहुगुणा समर्थकों का जमावड़ा देखने ही वाला था ,बहुगुणा जी वातानुकूलित डिब्बे से बाहर निकले ,समर्थकों ने उनका फूल -मालाओं से स्वागत कारण शुरू कर दिया । इसी बीच मैं में चुपचाप डिब्बे में घुस गया । सच बताऊँ पहली बार वातानुकूलित डिब्बे में घुसा था,यह कहने में कोई परहेज नहीं है । अपने निर्धारित समय से कुछ अधिक समय तक गाड़ी वहाँ रुकी रही। खैर साहब गाड़ी चली,बहुगुणा जी अपनी सीट पर आए ,उन्हें अपने अखबार के बारे में बताया और फिर बातचीत का सिलसिला चल पड़ा। राजनीति पर,प्रदेश की वर्तमान परिदृश्य पर बात हुई (जिसका उल्लेख फिर कभी)। गाड़ी 'आगरा कैंट' पहुंची, उनसे बिदा लेकर स्टेशन से बाहर आया। अब विकत संकट की कार्यालय कैसे जल्दी से जल्दी पहुंचा जाए। याद आ रहा है कि दो-तीन आटो बदल कर कार्यालय पहुँचते -पहुँचते रात के ग्यारह बज गए थे। दूसरे दिन वह खबर बनाम बातचीत आगरा के शहर पेज पर छपी थी। उसी समय का यह चित्र है । जिसमें में बहुगुणा जी के पीछे दाढ़ी में दिखाई दे रहा हूँ।आज बहुगुणा जी होते तो पूरे सौ साल के होते। यह उनका जन्म शताब्दी वर्ष है ,जो आज से शुरू हो रहा है। भारतीय माटी से जुड़े इस राजनीति के महानायक का जन्म 1919 को आज के ही दिन (25अप्रैल) उत्तराखंड राज्य के पौड़ी जिले के बुधाणी गाँव हुआ में था। उनके पूर्वज पश्चिम बंगाल के थे। बताते हें कि वे लोग वहाँ से बद्रीनाथ दर्शन के लिए आए थे । परिवार वेधकीय था ,जिस पर वहाँ की तत्कालीन रानी ने उन्हें 'बहुगुणा' उपाधि से अलंकृत किया,जो बाद में सभी के नाम के साथ जुड़ गया । बहुगुणा जी 1936 से 1942 छात्र आंदोलन से जुड़े रहे बाद में 1942 से वह भारत छोड़ो आंदोलन के सक्रिय सहयोगी हो गए। किसी बात को लेकर उनसे इन्दिरा जी से मतभेद हो गई तो उन्होने 1977 में कांग्रेस का साथ छोड़ दिया,लेकिन बाद में वह फिर 1980 में वापस भी लौट आए । 1974-75 में वे उत्तर परदेश के मुख्यमंत्री भी रहे, केंद्र में भी वह कई बार मंत्री भी रहे। उनकी पढ़ाई इलाहाबाद (अब प्रयागराज)में हुई थी। और बातें फिर कभी ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें