शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

मृत्यु से पहले महापंडित रावण ने लक्ष्मण को बताई थीं तीन बातें 

 इन दिनों छोटे पर्दे पर पुनः प्रसारित रामानन्द सागर की लोकप्रिय धारावाहिक रामायण ने लोकप्रियता के सारे मापदण्डों को पीछे करते हुए नंबर एक पर पहुँच चुकी है।जिसमें इस समय राम-रावण युद्ध चल रहा है, कभी भी रावण को श्री राम के हाथों  मोक्ष मिल सकती है। उसके बाद राम अपने भाई लक्ष्मण को रावण  के पास ज्ञान के लिए भेजते हैं ... क्या सीख मिलती है रावण से लक्ष्मण  को....
हम जब तक सामाजिक रूप से प्रमाणित अच्छे कार्य करते जाते हैं, तब तक समाज भी हमारी प्रशंसा करता है, लेकिन जैसे ही समाज के विरुद्ध एक बुरा काम किया नहीं कि हम सदा के लिए बुराई का पात्र बन जाते हैं। लंकापति रावण के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ । हम यह नहीं कहते कि रावण ने जो कुछ भी किया वह गलत था, परन्तु सीताजी का अपहरण करना ही उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल थी। यदि वो सीता जी का हरण ना करता तो कभी श्रीराम अपनी अर्धांगिनी को बचाने लंका ना आते और ना ही दैत्य रावण का अंत होता। यदि रावण सीता जी का हरण ना करता तो उसकी ज़िंदगी ही कुछ और होती... शायद वह भी आज देवता के समान पूजा जाता।
हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि रावण, जिसे पूरा विश्व राक्षस राजा के नाम से जानता है, वह एक महापंडित था। उसके तप में जो कठोरता थी, जो अग्नि थी वह शायद ही उस काल के किसी अन्य ऋषि-मुनि एवं पंडित में थी। कठोर तपस्या के मार्ग से ही रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न किया। शिवजी जानते थे कि रावण एक राक्षस है और अपने सवार्थ के लिए ही तप कर रहा है, लेकिन रावण की भक्तिपूर्ण तपस्या को वे भी दरकिनार ना कर सके और विवश होकर उन्हें रावण को वरदान देना ही पड़ा.... जिसके बाद रावण अत्यंत शक्तिशाली हो गया था।
शायद यह बात काफी कम लोग जानते हैं कि रावण के पिता एक ऋषि और माता एक असुर कन्या थी। इसलिए माता के गुणों के कारण ही रावण में असुरों के गुण आ गए... लेकिन पिता से मिला तपस्या का गुण ही रावण के लिए सर्वश्रेष्ठ साबित हुआ। दुनिया पर राज करने के लिए रावण ने तपस्या का मार्ग चुना, दिन-रात शिव जी का जाप किया। आखिरकार वर्षों की तापस्या पूर्ण करके रावण ने शिवजी का वरदान पाया। लेकिन वो कहते हैं ना यदि भगवान विवश होकर बुराई को भी वरदान देते हैं तो उसके अंत के लिए भी पहले से ही मार्ग चुन लेते हैं। कहते हैं कि जैसे ही भगवान शिव ने रावण को वरदान दिया था, उसी के साथ भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम के जन्म का फैसला कर लिया गया था। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अनुसार माता कैकेयी की इच्छा के मुताबिक श्रीराम, उनकी पत्नी सीता एवं अनुज लक्ष्मण को 14 वर्षों के वनवास के लिए अयोध्या छोड़कर जाना पड़ा। वनवास के कुछ वर्ष बीत गए थे कि अचानक राक्षस रावण की बहन शूर्पणखा ने वन में लक्ष्मण को देखा और देखकर मोहित हो गई। लेकिन लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटकर उसे वहां से भगा दिया, परन्तु जाते-जाते शूर्पणखा ने सुंदर सीता को देख लिया था। लंका जाते ही उसने अपने भाई रावण को सीता के बारे में बताया और षडयंत्र रचा ताकि रावण सीता का हरण कर उसे लंका ले आए।
श्री राम के आदेशनुसार  रावण के पैताने बैठते हैं तो रावण उन्हें बताते हें तीनों बात 
वन में अचानक एक सुनहरे हिरण को देख सीता ने श्रीराम से उसे लेकर आने को कहा, परिणाम स्वरूप राम घने जंगल की ओर निकल पड़े। कुछ देर बाद श्रीराम की मदद की पुकार सुन लक्ष्मण भी उन्हें बचाने वन में निकल गए लेकिन सीताजी की रक्षा के लिए कुटिया के चारों ओर लक्ष्मण रेखा खींच गए जिसे सीता के सिवा कोई पार नहीं कर सकता था। कुछ देर बाद रावण ऋषि का रूप धारण करके आया और सीता को लक्ष्मण रेखा पार कर भीक्षा देने को कहा। कुछ झिझकने के बाद सीता ने बाहर आकर जैसे ही भीक्षा देना चाहा रावण अपने असली रूप में आ गया और सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गया। बस यहीं से रावण का बुरा समय आरंभ हो गया....
 श्रीराम नहीं जानते थे कि सीता कहां हैं.... लेकिन काफी जद्दोजहद के बाद उन्हें मालूम हुआ कि लंकापति रावण उन्हें ले गया है। लंका का रास्ता खोजने में हनुमानजी और वानर सेना ने उनकी सहायता की। आखिरकार वे लोग पत्थरों का पुल बनाकर लंका पहुंचे... आरंभ में श्रीराम ने रावण को कुछ शांति संदेश भिजवाए और कहा कि वो सीता को छोड़ दे। लेकिन रावण ने अहंकारवश उसे स्वीकार नहीं किया।और फिर हुआ भीषण युद्ध... एक ओर वानर सेना और दूसरी ओर राक्षसी सेना। युद्ध के कुछ दिनों में ही रावण के पुत्र, भाई कुम्भकर्ण और अन्य राक्षस मारे गए। इधर वानर सेना का भी भारी नुकसान हुआ.... लेकिन आखिरी दिन वह था जब श्रीराम और रावण के बीच युद्ध हुआ। वो कहते हैं ना कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी हो, अच्छाई के सामने छोटी ही पड़ जाती है। रावण ने अपनी दैत्य शक्तियों का भरपूर उपयोग किया लेकिन श्रीराम के वार को वह सह ना सका और अंत में अपना आखिरी श्वास लेता हुआ धरती पर जा गिरा।
  यह वह समय था जब रावण भूमि पर लेटे हुए अपनी अंतिम सांस का इंतजार कर रहा था। तब श्रीराम ने अनुज लक्ष्मण को बुलाया और कहा, “जाओ, रावण के पास जाओ और उससे सफल जीवन के अनमोल मंत्र ले लो। यह बात सुनकर पहले तो अनुज लक्ष्मण को श्रीराम की बात पर कुछ संदेह हुआ... वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिरकार एक दुश्मन से सफलता का क्या पाठ मिलेगा। लेकिन ज्येष्ठ भ्राता के आदेश को लक्ष्मण नकार नहीं सकते थे और आखिरकार वे रावण के सिर के पास जाकर खड़े हो गए। रावण काफी कठिन हालत में श्वास ले रहा था और सिर के पास खड़ा लक्ष्मण उसे काफी ध्यान से देख रहा था और प्रतीक्षा कर रहा था कि कब वह कुछ बोले। लेकिन रावण ने अपने मुख से एक शब्द ना कहा और निराश होकर लक्ष्मण अपने भाई श्रीराम के पास लौटा और कहा कि रावण तो कुछ कह ही नहीं रहे
   तब श्रीराम मुस्कुराए और बोले, “जब हमें किसी से शीक्षा प्राप्त करनी हो तो कभी भी उसके सिर के पास खड़े नहीं होना चाहिए। जाओ, रावण के चरणों के पास जाकर हाथ जोड़कर प्रार्थना करो, वे तुम्हे सफलता की कुंजी अवश्य प्रदान करेंगे। । श्रीराम के यह वचन सुनकर लक्ष्मण को अचंभा हुआ लेकिन आज्ञानुसार उसने ठीक वैसा ही किया जैसा प्रभु चाहते थे।
भाई की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण  राक्षस राजा रावण के चरणों के समीप गए , हाथ जोड़े और आग्रह किया कि रावण उन्हें सफल जीवन के मंत्र प्रदान करें ।उस समय रावण ने अपने मुख से कुछ वचन बोले और उन्हें सफल जीवन की तीन मूल्यवान बातें बताईं...
  पहली बात जो रावण ने लक्ष्मण को बताई वह ये थी कि शुभ कार्य जितनी जल्दी हो कर डालना और अशुभ को जितना टाल सकते हो टाल देना चाहिए यानी शुभस्य शीघ्रम्। रावण ने लक्ष्मण को बताया, ‘मैं श्रीराम को पहचान नहीं सका और उनकी शरण में आने में देरी कर दी, इसी कारण मेरी यह हालत हुई
   इसके बाद रावण ने लक्ष्मण को जो दूसरी बात बताई वह और भी हैरान कर देने वाली थी। उसने कहा, “अपने प्रतिद्वंद्वी, अपने शत्रु को कभी अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए, वह आपसे भी अधिक बलशालि हो सकता है। मैंने श्रीराम को तुच्छ मनुष्य समझा और सोचा कि उन्हें हराना मेरे लिए काफी आसान होगा, लेकिन यही मेरी सबसे बड़े भूल थी। रावण ने आगे कहा, “मैंने जिन्हें साधारण वानर और भालू समझा उन्होंने मेरी पूरी सेना को नष्ट कर दिया। मैंने जब ब्रह्माजी से अमरता का वरदान मांगा था तब मनुष्य और वानर के अतिरिक्त कोई मेरा वध न कर सके ऐसा कहा था क्योंकि मैं मनुष्य और वानर को तुच्छ समझता था। यही मेरी गलती थी।
  रावण ने लक्ष्मण को तीसरी और अंतिम बात ये बताई कि अपने जीवन का कोई राज हो तो उसे किसी को भी नहीं बताना चाहिए। यहां भी मैं चूक गया क्योंकि विभीषण मेरी मृत्यु का राज जानता था, अगर उसे मैं यह ना बताता तो शायद आज मेरी यह हालत ना होती।
डॉ प्रदीप श्रीवास्तव

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