मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

प्रधान मंत्री-1


 तत्कालीन प्रधान मंत्री चंद्र शेखर सिंह के साथ जनसंदेश समपादकीय परिवार। 

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह,मैं एवं उनका भोड़सी आश्रम 
यह चित्र है सन 1990 का जब भारतीय राजनीति में तुर्क नेता के रूप में मशहूर बलिया निवासी चंद्र शेखर सिंह भारत के प्रधान मंत्री बने थे। यह पहला मौका था जब किसी भी राजनेता (सांसद) का किसी विभाग के मंत्री बने बिना प्रधान मंत्री  बनना । उन दिनों मैं गुड़गाँव (आज का गुरुग्राम) से प्रकाशित हिन्दी दैनिक 'जनसंदेश' में साहित्य संपादक हुआ करता था । अखबार के मालिक थे उप प्रधान मंत्री चौधरी देवीलाल के बेटे व उस समय हरियाणा के मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला । चौटाला परिवार और चंद्रशेखर का काफी गहरा संबंध । लिहाजा जनसंदेश प्रबंधन में चंद्र शेखर जी का भी काफी अपरोक्ष सहयोग था ही। प्रधान मंत्री बनने के बाद एक दिन वह जनसंदेश के गुड़गाँव कार्यालय आए। तब भी प्रधान मंत्री की सुरक्षा में सारा सरकारी अमला लगा रहता था ,फिर वह तो अपने घर आए थे ,इस लिए सुरक्षा कर्मी काफी दूर थे । लगभग दो घंटे अखबार के परिवार के साथ रहे । सभी से बातचीत की । यह अलग की बात है की प्रधानमंत्री के पद से हटने एवं हरियाणा में चौटाला की बादशाहत खत्म होते ही वह अखबार भी काल के गाल में ही समाहित हो गया । उस समय 'जनसंदेश' ने चंद्र शेखर सिंह जी के 'भोड़सी आश्रम' पर अपने रविवारीय अंक (25 नवंबर 1990) की एक कवर स्टोरी भी की थी। जिसका इनपुट तैयार किया था समाचार संपादक अनिल सोनी ने ,सभी चित्र खींचे थे मैं ने स्वयं। मेरी भी पत्रकारिता का वह स्वर्णिम युग ही कहा जाएगा, क्यों की तब प्रधान मंत्री जी के कई कार्यक्रमों को कवर किया था ।
इस चित्र में आप देख सकते हैं (बाएँ से दायें) जनसंदेश अखबार के प्रधान संपादक डॉ चंद्र त्रिखा जी (डॉ त्रिखा आज कल हरियाणा उर्दू अकादमी के अध्यक्ष हैं ) उनके बाद दिखाई दे रहे हैं श्री अनिल सोनी ,समाचार संपादक (तब, इन दिनों वे हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ,धर्मशाला से प्रकाशित हिमाचल का सर्वाधिक लोकप्रिय हिन्दी दैनिक "दिव्य  हिमाचल" के प्रधान संपादक हैं,) इन दोनों लोगों के बीच चश्में में (बीच में से झाँकता हुआ) मैं । सोनी जी के बगल में उपसंपादक शशि अग्रवाल (अब डॉ शशि सिंघल),उनके बगल में तत्कालीन माननीय प्रधान मंत्री जी , उनके बगल में डॉ त्रिखा की बेटी मीनाक्षी त्रिखा(जो उन दिनो अँग्रेजी अखबार 'दि  ट्रिब्यून' में हुआ करती थीं । साथ में समपादकीय विभाग के बहुत सारे सहकर्मी ,जिनमें से काईयों के नाम याद नहीं रहे।
(कल दूसरे प्रधान मंत्री के दर्शन के बारे में)
अगर आप बोर हो रहें हैं तो अपने मित्रता सूची से निःसंकोच हटा सकते हैं ,क्यों कि लंबे  अंतराल के बाद अपने अनुभव साझा करने का मन बनाया है ।   
प्रदीप श्रीवास्तव 

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