रविवार, 14 नवंबर 2021

मेरे मुहं से निकला था पहला शब्द "बाबू"

 अयोध्या और मैं /अल्हड़ नादानियाँ -1

         संस्कृति एक सागर है .देश के कोने-कोने से कई तरह की पतली और मोटी  धाराएँ आकर इसमें मिलती हैं ,यही तो 'अयोध्या' है . हमारा अतीत ,हमारा वैभव ,बड़ों की थाती ,हमारी धरोहर ,यही है अयोध्या . जिसके बारे में श्री रामचरित मानस के अयोध्या काण्ड  में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं की-

कही न जाई कछु नगर विभूति ,

जनु एतनिश्र विरंची करतूती|

(अर्थात नगर का ऐश्वर्य कुछ कहा नहीं जाता.ऐसा दिख पड़ता है ,मानो  ब्रह्मा जी कारीगिरी बस इतनी ही है ,इससे परे संसार में कुछ भी नहीं है.)

वहीँ  कवि आचार्य केशव की कल्पना देखिये -

'अति चंचल जहं चल दलै , / विधवा बनी न नारी |'

     ऐसा ही हमारा एक छोटा सा अंचल है ,फैजाबाद ,जिसको अब अयोध्या के नाम से जाना जाता है.पहले अयोध्या एक उपनगर ही हुआ करता था ,अब पूरे जिले को अयोध्या का नाम मिल गया . फैजाबाद का एक अंग होता था अयोध्या ,अवधपुरी ,राम की नगरी ,मिली-जुली संस्कृति की नगरी ,सीता की नगरी,हमारी संस्कृति वैभव की नगरी . तीन कस्बो यानी अजोध्या या अयोध्या ,फैजाबाद ख़ास एवं फैजाबाद छावनी (जिसे अब नाम मिल गया है अयोध्या छावनी)को मिलाकर बना था यह शहर . इस शहर के इतिहास को जानने के  लिए सरकारी  गजेटियर के पन्ने पलटने  होंगे . 1908 के गजेटियर के मुताबिक उत्तर प्रदेश का पूर्वी हिस्सा क्षेत्रफल 121.134 वर्ग मील. सीमा नेपाल की तराई से लेकर गंगा तक. पूर्व में गोरखपुर एवं बनारस ,पश्चिम में लखनऊ  डिवीजन .

     "अयोध्या 'शब्द के कई अर्थ लगाये जाते हैं .कुछ लोग कहते हैं कि इसका अर्थ है अविजित तो कुछ का मानना है वचन ,इसलिए इसे वचन की पूर्ति वाली भूमि भी कहा गया है. जिसका सम्बन्ध मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के उस वचन से है,जिसके अनुसार उन्होंने चौदह वर्ष का वनवास भोग. इसके आलावा अयोध्या का अर्थ 'युद्ध' से भी लगाया जाता है,मतलब अयोध्या में आकर बसने वाले अधिकाशं राजा क्षत्रिय थे,योद्धा थे,इस लिए इस भूमि का नाम अयोध्या पड़ा. (अयोध्या के इतिहास पर फिर कभी)

 इसी छोटे से अंचल अयोध्या कैंट (छावनी ,जो कभी फैजाबाद शहर के नाम से जाना जाता था) के मुख्य बाज़ार चौक के निकट  तेली टोला नामक मोहल्ले में आज से 62 साल पहले ,दिन मंगलवार की सुबह 8.30 बजे मै ने अपने पैतृक घर के एक छोटे से कमरे में आँखे खोली थीं.अम्मा (स्व.उमा श्रीवास्तव) एवं बाबू (स्व जगेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव) की तीसरी संतान था, सब कुछ सामान्य ढंग से रहा होगा ,मुझसे बड़े एक भाई श्री प्रभात कुमार एवं उनसे बड़ी बहन जिज्जी श्रीमती मंजू श्रीवास्तव.मुझसे छोटा एक भाई अतुल श्रीवास्तव एवं सबसे छोटी बहन अमिता श्रीवास्तव,मतलब पांच भाई बहन सहित सात लोगों का एक छोटा सा परिवार (छोटा इस लिए कि उस समय परिवार में बच्चों की संख्या की कोई गिनती नहीं थी. मेरे बाबा दो भाई थे ,बाबा को दो लड़कियां एवं दो लड़के ,मेरे पिता जी एवं चाचा स्व दुर्गा प्रसाद श्रीवास्तव . बड़े बाबा को तीन लड़के एवं पांच लड़कियां . सबसे बड़े ताऊ स्व गोमती प्रसाद श्रीवास्तव ,उनके बाद स्व हरिहर प्रसाद श्रीवास्तव एवं परिवार में सबसे छोटे चाचा स्व नन्द प्रसाद  श्रीवास्तव. बड़े ताऊ जी का उल्लेख इस श्रृंखला में करूँगा,क्यों कि उनके उल्लेख के बिना यह श्रृंखला अधूरी होगी.उन्हें आज भी लोग  गोमती बाबू के नाम से अयोध्यावासी जानते हैं.

      हाँ तो जन्म लेने के बाद कुछ दिनों तक आम नवजात शिशु की तरह, शायद हाँ -हूँ ही करता रहा हूंगा ,साल भर बाद भी जब मैं नहीं बोला ,मतलब मेरे गले से शब्द नहीं निकले तो घर वालों को चिंता सतानी शुरू हो गई . यह सब बातें अम्मा बताती थीं. कई डाक्टरों-हकीमों  को दिखाया , झाड़ -फूंक कराये ,पर शायद कोई निष्कर्ष नहीं निकला. न जाने कितनो शहरों  के कौवों के जूठे खिलाये गए,क्या कुछ नहीं किया गया मेरे बोलने के लिए .लेकिन सब 'ढ़ाक के तीन पात' वाली कहावत को ही चरितार्थ करते रहे. जब और थोडा सा बड़ा हुआ तो आम बच्चों की तरह शायद मेरे मन में भी बिस्कुट,लेमन चूस खाने की ललक उठती रहती रही होगी. जिसके लिए अधन्नी ,चवन्नी (उस समय की मुद्रा) की जरुरत पड़ती रही होगी,बोल पता नहीं था ,तो मांगूं कैसे ? अम्मा बताती थीं कि उसके लिए ' मैं अपने अंगूठे एवं बीच की उंगलियों को एक-दूसरे के ऊपर रख कर ट्विस्ट (टास की तरह ) करता तो वह समझ जातीं कि पैसा चाहिए . अगर भूख लगी हो या दूध मांगना होता तो मैं अपने अंगूठे एवं उसके बगल की अंगुली को फैला कर थोडा गैप बना देता तो वह जान जाती कि इसे दूध चाहिए. यह आदत तो जब तक वह रहीं तब तक रहा,बदल गया  तो केवल पेय पदार्थ ,दूध की जगह चाय ने ले ली थी . बाल-बच्चे वाला होने के बाद भी अम्मा से इसी तरह चाय की मांग करता था.

   अब आप सोच रहें होंगे कि बस बकबक ही किये जा रहा है ,आखिर बोला कब ? इसका भी मज़ेदार वाक्या है, बाबू का तबादला बनारस हो गया ,बात सन 62 की है ,हम लोग नदेसर क्षेत्र के घौसाबाद में एक स्टेशन मास्टर चाचा के घर मैं किराये पर रहते थे .उसी दौरान मेरे दाहिनी तरफ सीने के नीचे एक फोड़ा सा हो गया ,जो जहर के रूप में पूरे शरीर मैं फैल गया ,जिसका एक मात्र ईलाज था,आपरेशन . अम्मा ने बताया था कि जब डाक्टर साहब ने उस फोड़े का आपरेशन किया था तो मैं दर्द से बिलबिला उठा ,और मेरे मुंह से जोर से निकला "बाबू ". सच कह रहा हूँ दुनिया का शायद पहला बच्चा रहा हूँगा जिसके मुहं से निकला कोई शब्द 'पहली बार' किसी ने सुना होगा (ह ह ह हा). यह खबर पोस्ट कार्ड के माध्यम से पूरे परिवार को भेजी गई थी. उसके बाद से जो बोलना शुरू किया तो आज 57 साल से  निरंतर ही बोलते जा रहा हूँ, चाहे जुबान से या फिर कलम से. तभी तो मेरी छोटी बेटी कहती रहती है ,पापा पांच साल तक तो बोले नहीं ,इस लिए उसकी भरपाई अब पूरी कर रहे हैं. आज बस ...

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