बुधवार, 16 सितंबर 2009

मौसम कवि सम्मेलन का

कविवर आदरणीय श्री गोपाल दास नीरज जी के साथ1982 में
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व्यंग्य
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मौसम कवि सम्मेलन का
च कह रहा हूँ ...जनाब यह सुहाना मौसम कवि सम्मेलन का है.
होली का रंगीन माहोल ,बसंत की मादक सुगंध ,हल्की सर्दी, प्राकृत
को मोह लेने वाला रूप. पढाई का सत्र समाप्त होने को है.इस लिए
इस मौसम मे कवि सम्मेलन करवाने का कई लोग मन बना रहे हैं ,
अधिकारी,छात्र नेता व विभिन्न संस्थाओं के लोग बचे हुवे धन को
स्वाह करने के लिए कई योजनायें बना रहे हैं.इसके लिए कवि
सम्मेलन से अच्छा माध्यम ओर कोई नहीं हो सकता ,न हल्दी लगे
न फिटकरी-रंग चोखा .कोई विशेष प्रबंध की जरुरत नहीं .कुछ मंच
पछाड़ कवियों पत्र डाल दीजिये उनके लिए दुग्ध की तरह मंच
बनवाइए जिस पर बैठकर वे कुछ सम्मानित लोगों के साथ चाय
पानी का आनंद उठा सकेंओर दर्शक उन्हें देख कर.मन लीजिये आप
को कवि नहींमिल रहें हैं तो परेसान होने की कोई जरुरत नहीं ,किसी
कवि ठेकेदार कवि साहेब को पकड़लीजिये,आप का काम आसानी से हो
जायेगा .हाँ अगर आप भी कुछ लिखते हैं तो फिर क्या कहने का,
बहती गंगा में आप भी अपना हाथ धो लीजिये .नहीं तो वाही जिंदगी
भर नून-तेल - लकडी के चक्कर में रह जाएँगे.धन कमाने के लिए केवल
कविता लिखना या फिर कवि होना जरुरी नहीं है.यदि आप का गला
मधुर है,तो फिर बस समझ लीजिये कि कवि सम्मेलन के मंच पर
माँ लछमीआप का ही इंतजार कररही हैं.आप शब्ब्दो कि तुकबंदी कर सकते
हैं तो फिर काया कहने,सोनेमे सुहागा का करेगा(आज के श्रोताओं कि भी
यही पसंद है.). या फिर कुछ पत्र - पत्रिकाओं से कुछ अलग -अलग पंक्तियाँ
चुरा कर उन्हें क्रम से लिपिबद्ध कर लें,उसके अर्थ पर मत ध्यान दें,आप
तो मंच कवि हैं, साहित्यिक कवि थोडें हैं.श्रोतागण तो आप के गले कि
किसमिसी वाणी पर ही धयान देगा .मन लें अगर किसी मुर्ख श्रोता ने
अर्थ पूछ ही लिया तो पहले आप उसे कुछ देर तकएक तक देखिये ,कुछ
देर रुकने के बाद कहिये आप को पता ही नहीं है कि गीत होती क्या है, फिर
उसे देखिये ओर आगे कहिये ...गीत को पिया जाता है ,टटोला नहीं,समझे
क्या? वह बेचारा खुद झेंप जाये गा ,ओर चुप हो कर एक किनारे जा कर
बैठ जायेगा . अब अगर मन लें कि आप कि आवाज बुलंद है तो फिर क्या
कहने, आप जोशीली कवितायेँ लाईये ,उसके साथ थोडा हेर - फेर कर के
वीर रस के कवि बन जाइये. हाँ इतना ध्यान जरुर रखियेगा कि इस रस
के लिए आपका व्यक्तित्व रोबीला होना चाहिए ,तभी श्रोताओं पर आप का
प्रभाव पड़ेगा.मान लीजिये कि आप के गले में दम नहीं है तो निराश मत
होइए ,कवि बनने का कि और सरल नुख्सा आज कल प्रचलित है.बस
कुछ चुटकुले बटोर लीजिये और उन्हें तुक में बांध लीजिये फिर देखिये
मंच पर आप कि कितनी मांग होगी ."एक बार और -एक बार और " से
आप थक जायेंगे,लेकिन श्रोता नहीं. अगर आप यह भी नहीं कर पाते तो
बस ठेका ले लीजिये कवि सम्मेलन करने का.इसके लिए कोई टेंडर तो
निकलता नहीं,इसके लिए आप को इतना करना पड़ेगा कि आप अपने नगर
कि सभी साहित्यिक व गैर साहित्यिक संस्थाओं से संपर्क बनाइये ,और
उन्हें कवि सम्मेलन करवाने दबाव डालिए .कुछ प्रतिशत ले-दे कर उनके
पधाकारियों से पूरा ठेका ले लीजिये .बस अपने मन माफिक कवियों को
बुलवाइए ,उनसे भी प्राप्त कमीशन डकार जाइये.अगर इसके लिए कुछ और
भी टैक्ट अपनाना पड़े तो उसे भी अपनाने से पीछे मत होइए गा. घर आ
रही लक्ष्मी जी का अनादर मत कीजियेगा और न ही बाद में हमें गाली
दीजिये गा कि पहले पहले क्यों नहीं बताया,बता देते तो क्या चला जाता
.कोई बात नहीं अभी भी काफी समय है, नहीं समय कम है काम काफी है.
कहतें हैं न कि परिश्रम का फल मीठा होता है.दूर दृष्टि और इरादा पक्का
कर लीजिये .तुंरतअपने शहर,नगर व मोहल्ले में ही सही कवि सम्मेलन
करवा डालिए ,मोसम निकला जा रहा है.नहीं तो बाद में वाही बात होगी
कि "चिरिया चुग गई खेत ,अब पछताय होंत का" .

प्रदीप श्रीवास्तव,वाराणसी उ. प्र. (मार्च 1982)
(यह वयंग्य रचना में ने 1982में लिखी थी ,जिसका प्रकाशन एक राष्ट्रिय हिन्दी
दैनिक में हुआ था . जिस पर "अखिल भारतीय कला साहित्य परिषद् " उत्तर
प्रदेश द्वारा संचालित "कला साहित्य विद्यापीठ " मथुरा ने1983 में "साहित्य सरस्वती "
की उपाधि से नवाजा था।)

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