सोमवार, 17 अगस्त 2009

नांदेड में सर्व भारतीय भाषा

भाषा सम्मलेन को संबोधित करते हुवे डॉ नन्द किशोर नौटियाल जी
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नांदेड में सर्व भारतीय भाषा सम्मलेन पर बहस
शिक्षा आयोग द्वारा पहली कक्षा से अंगरेजी भाषा के अनिवार्य करने से भारतीय संस्कृति को एक बार फिर से अंग्रेजियत का गुलाम बनाने का प्रयास है . इससे हमारी २४ भाषाओं को खतरा पैदा हो रहा है ,जिन्हें सविधान ने सम्मान दिया है. अंगरेजी भाषा को व्यापार व अन्य कार्यो के लिए उपयोग में लाया जाये तो ठीक है ,लकिन दैनिक उपयोग में लाना खतरनाक है. यह बात महाराष्ट्र राज्य हिंदी सहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्री नन्द किशोर नौटियाल गत ११ व १२ ऑगस्ट को महाराष्ट्र के नांदेड में अकादमी एवं पीपल्स महाविद्यालय के सयुंक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय "सर्व भारतीय भाषा सम्मलेन के उदघाटन अवसर पर कही. उनहोने आगे कहा कि "देवनागरी लिपि वैज्ञानिक है ,जिसे दुनिया कि कोई भाषा चुनोती नहीं दे सकती . जबकि स्वामी रामानंद तीर्थ विश्व विधालय नांदेड के कुलपति डॉ सर्जेराव निमसे का कहना था कि भू-मंडलीयकारन के इस दौर में हमें केवल एक भाषा तक आश्रित नहीं होना चाहिए . इस अवसर पर आयजित कवि सम्मलेन का शुभारम्भ करते हुवे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक राव चोहन ने कहा कि सरकार मराठी, हिंदी ,सिन्धी ,उर्दू व गुजराती भाषा के विकास के लिए सरकारी स्तेर पर सर्वोपरि प्रयास करेगी .दो दिन के इस सम्मेलन में भाषा के साथ-साथ "उत्तेर साहित्य में दलित ओर स्त्री विमर्श ,प्रचार प्रसार माध्यम ओर भारतीय भाषाएँ ,दखिनी साहित्य में कल्पना ओर यथाथ " विषय पर खुल कर चर्चा हुई .जिसमें भाग लिया पत्रकार प्रकाश दुबे ,डॉ विजय राघव रेड्डी, अलोक भट्टाचार्य ,कवित्री कुसुम जोशी ,डॉ सुधीर गव्हाने ,डॉ रमा नवले अदि लोगों ने भाग लिया.

1 टिप्पणी:

kalambadh ने कहा…

हिन्दी और अंग्रेजी का द्वंद्व देश की आजादी से जारी है। अगर यह मान लिया जाए कि शासकीय स्तर पर हिन्दी से भेदभाव अधिक हुआ है तो इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि देश के हिन्दी भाषियों ने भी हिन्दी के प्रति अपनत्व नहीं दिखाया है। इसका एक दुखद पहलू यह भी है कि लोग न तो ठीक से अपनी भाषा का सम्मान ही कर सके और न अच्छे अंग्रेजीदां बन सके। हिन्दी भारत भूमि पर जन्मी और पली-बढ़ी हुई है। इसलिए मेरा मानना है कि अंग्रेज डेढ़ सौ साल भारत में रह कर जिसे समाप्त नहीं कर सके उसे भारत में पैदा हुए दो-चार-दस फीसदी अंग्रेजीदां भला क्या मिटा सकेंगे। आवश्यकता केवल इतनी है कि हिन्दी भाषी अपने साहित्य, संस्कृति के प्रति प्रेम और हमारी भाषा के आदरणीय पुरोधाओं के प्रति सम्मान बनाए रखें। अंग्रेजी भी सीखें परंतु हिन्दी बने रहें क्योंकि हम हैं हिंदुस्तानी। विश्व हमें हमारे देश और भाषा से पहचाने।

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