शनिवार, 27 जून 2020

34 साल पहले ...

"केसी होगी 21 वीं सदी की नारी ?" आज के संदर्भ में 
 डॉ प्रदीप श्रीवास्तव 
बात लगभग 34 साल पहले की है , मैं  काशी विद्यापीठ विश्व विद्यालय (महात्मा गांधी जुड़ गया है )  में पत्रकारिता का छात्र था , फाइनल परीक्षा दे चुका था ,बस रिजल्ट आने वाला था । उन दिनों प्रदेश क्या पूरे देश का सर्वाधिक लोकप्रिय दैनिक अखबार "आज " हुआ करता था ,जिसमें छपना अपने आप में एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने के समान होता था। जिसकी आधारशिला बाबू शिव प्रसाद गुप्त ने राखी थी , सम्पादन बाबु राव विष्णु राव पराड्कर, लक्ष्मी नारायण गर्दे जी जैसी विभूतियों ने किया था। तब 'आज' के सयुंक्त संपादक डॉ राम मोहन पाठक जी (आज कल दक्षिण हिन्दी प्रचार सभा चेन्नई के उप कुलपति हैं )हुआ करते थे । जो  विद्यापीठ पत्रकारिता विभाग के निदेशक भी थे। अचानक एक दिन उन्होने ने मुझे लहूराबीर अड़ी (मुंशी प्रेमचंद जी की प्रतिमा के सामने) पर देख लिया, जहां मैं अपने कुछ (उस समय के) उभरते साहित्यकारों,पत्रकारों के साथ खड़ा था, पास बुलाया, उनके पास पहुँचते ही परंपरा का निर्वाह करते हुए उनके चरण स्पर्श किए। एक बार तो उन्होने ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा ,फिर वहाँ खड़े होने का कारण पूछा , सामने गुरु जी ,बस इतना ही निकाला की 'सर चाय पी रहा था'। इतनी बात पर जो डांट  पिलाई कि पूछिये मत ,और वह आप को बता भी नहीं सकता ।
खैर साहब उसके बाद डॉ साहब ने कहा कि कल आफिस ( 'आज' के )में  मिलो । दूसरे दिन मैं निश्चित समय पर मिलने आज कार्यालय पहुंचा। उन्हो ने 'मुझे' आज के लिए एक परिचर्चा करने का निर्देश दिया। विषय था "केसी होगी 21वीं सदी की नारी"। इसके साथ ही काशी की कुछ संभ्रांत महिलाओं के संपर्क पते भी , और कहा कि मेरा नाम लेकर मिल लेना। इस परिचर्चा को तैयार करने में करीब-करीब  दो माह का समय लग गया । बाद में यह परिचर्चा "दैनिक आज" में ( 4मईएवं 11मई 1986 )दो भागों में प्रकाशित हुई थी । परिचर्चा को पढ़ें तो आप सोच भी नहीं सकते कि उस समय की विदुषी महिलाओं ने जो भी अपने विचार व्यक्त किए थे , वे आज 34 साल बाद भी हु-ब-हू सटीक बैठ रहें हैं । उन कल्पनाओं को में नमन करता हूँ। 

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