मित्रों ,काफी दिनों बाद आप से यहाँ पर मुखातिब हो रहा हूँ,माफ़ करना | पत्रकारिता क़ी दुनिया में खबरों के बीच समय काम मिल पाता है,फिर भी प्रयास करूँगा कि सप्ताह में न सही पखवाड़े में तो आप से यहाँ पर मिल सकूँ|
हर की पौड़ी पर फोटो खींचता एक व्यवसायिक फोटोग्राफर
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हरिद्वार,हर क़ी पैड़ी और जग भौजी का स्नान
बीते माह (मई ) मैं अपने परिवार के साथ हरिद्वार घूमने गया, गया तो पहले भी था,लगभग चालीस साल पहले
सन 1972 में | तब मैं गया था अपने बाबू (पिताजी ),अम्मा (माताजी) एवम छोटे भाई बहन के साथ |इस बार
गया था अपनी पत्नी,व दोनों बेटियों के साथ| तब मैं अपनी अम्मा क़ी अंगुली पकड़ कर गंगा घाट पर टहल
रहा था, इस बार मेरी बेटी मेरी अगुली पकड़ कर घूम रही थी | पिछले चालीस सालों में काफी कुछ बदल गया है वहाँ पर ,कितना गंगा जल बह गया ,लेकीन नही बदली हमारी मानसिकता ,बदलते परिवेश के साथ हम ने जरुर अपने को बदलने का प्रयास किया है,वह भी पश्चिमी सभ्यता को अपनाने के प्रयास में |सन 1972 मे जिस दिन "हर क़ी पौड़ी " पर फिल्म "रामपुर का लक्षमण "के एक गाने क़ी शूटिंग हो रही थी ,जिसमे नायिका दो कपड़ों में थी| शूटिंग के दौरान काफी सुरक्षा व्यवस्था थी| लेकिन इस बार जो कुछ मुझे वहाँ पर देखने को मिला ,उस पर अभी -अभी भी अपनी आखों पर विश्वास नहीं होरहा है.घटना कुछ इस प्रकार है\दिनांक १३ मई ,दिन शुक्रवार ,सुबह लगभग ग्यारह बजे होंगे, में और मेरे साढू का परिवार हर कि पौड़ी पर स्नान कर बाहर ही निकले थे कि तभी तीन महिलाये जिनकी उम्र होगी लगभग चालीस,पैतीस एवं बीस साल क़ी |शायद तीनों अकेले ही आयी थी क्यों कि उनके साथ कोई पुरुष नहीं दिखाई दिया| तीनों वहीँ घाट पर बैठ कर नहाने लगीं,सभी राजस्थानी लिबास में ही थी , मतलब घाघरा -चोली में| उनमें जो सबसे उम्र दराज क़ी महिला थी ,उन्हें शायद कपड़ों में नहाने में कुछ असुविधा महसूस हो रही थी| उस समय केवल मेरी ही नहीं अपितु गंगा घाट पर खड़े सभी लोगों क़ी निगाहें उन्हीं तीनो महिलाओं पर ही थीं ?सभी अपनी नजर (अपने परिवार वालों से )चुराकर उन्हें ही देख रहे थे| इसी बीच उनमे जो उम्र दराज महिला थी ,वह पानी से बाहर निकली और इधर उधर देखा,फिर पानी में गई,और घाट क़ी सीढ़ी पर बैठने के बाद अपने दोनों पावं से घाघरा घुटने तक उठाया ,पांवो गंगा के ठन्डे पानी में डाल दिया | कुछ ही पाल बाद देखा कि उसने दन से अपनी चोली निकाल कर अपने सीने को दोनों पांवो के बीच दबा कर स्नान करने लगी | न शर्म ,न हया , जरा सा भी उनमे नहीं दिखा | उस द्रश्य को देख कर अपने देश में एक शराब बनाने वाली कम्पनी के वार्षिक कलेंडर क़ी याद आ गई| आप आश्चर्य करेंगे कि उस महिला ने खुले आकाश के नीचे,सभी के बीच खुल कर नहाई |अभी अपने बदन को पीछे करती तो कभी आगे करती,निःसंकोच उसने गंगा स्नान का भर पूर आनंद उठाया | यही नहीं घाट पर खड़े स्नान करने आये लोगों ने भर पूर नैन सुख भी मजे से लिये |इस तरह का फूहड़ दृश्य मुझे तो क्या किसी को शायद ही कभी देखने को मिला होगा |कहते हैं क़ी अश्लीलता देखनी हो तो गोवा जाओ ,लेकिन जहाँ तक में समझता हूँ कि वहाँ भी शायद ही ऐसा दृश्य देखने को मिले? उस दृश्य को देख कर राज कपूर साहब क़ी फिल्म "राम तेरी गंगा मेली "का एक दृश्य याद आ रहा है जिसमे नायिका झरने पर एक मात्र सफ़ेद साडी पहने नहाती है |मुझे अच्छी तरह याद है कि उस दृश्य को लेकर उन दिनों काफी बवाल भी मचा था,लेकिन उसी द्रश्य को देखने के लिये दर्शक सिनेमा घरों पर टूट पड़ते थे |
में ने यहाँ पर शीर्षक में "जग भौजी " का जिक्र किया है|वह इस लिये कि बचपन में लोगों से सुना करता था कि गाँव महल्ले में कुछ ऐसी महिलाऐं होती थी ,जो सभी क़ी भौजाईकहलाती थीं ,जिनके साथ लोग हंसी -मजाक भी किया करते थे,लेकिन वह भौजी उसे बुरा नहीं मानती थी|मौका पाते लोग-बाग उन्हें छेड़ भी दिया करते थे ,अभी भी हैं | कुल मिला कर इतना कहूँगा कि गत चालीस वर्षों में काफी कुछ बदला है ,नहीं बदली है तो हमारी मानसिकता ,क्यों कि आज भी हम पश्चमी सभ्यता को अपनाने के पीछे अपनी संस्कृति व सभ्यता को भूलते जा रहे हैं जिसे संरक्षित करने क़ी पहल हमें ही करनी होगी |
में ने यहाँ पर शीर्षक में "जग भौजी " का जिक्र किया है|वह इस लिये कि बचपन में लोगों से सुना करता था कि गाँव महल्ले में कुछ ऐसी महिलाऐं होती थी ,जो सभी क़ी भौजाईकहलाती थीं ,जिनके साथ लोग हंसी -मजाक भी किया करते थे,लेकिन वह भौजी उसे बुरा नहीं मानती थी|मौका पाते लोग-बाग उन्हें छेड़ भी दिया करते थे ,अभी भी हैं | कुल मिला कर इतना कहूँगा कि गत चालीस वर्षों में काफी कुछ बदला है ,नहीं बदली है तो हमारी मानसिकता ,क्यों कि आज भी हम पश्चमी सभ्यता को अपनाने के पीछे अपनी संस्कृति व सभ्यता को भूलते जा रहे हैं जिसे संरक्षित करने क़ी पहल हमें ही करनी होगी |
प्रदीप श्रीवास्तव
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