हुआ करता था। फोन पर अपनों कि तरह आदेश मिला कि तुंरत हेदराबाद बाद चले आओ । डॉ साहेब का फोन,मुझसे उम्र मैं काफी बड़े ,उनकी बात केसे टाल सकता था। इन्हीं डॉ साब के पास उस समय नौकरी के लिए जाता था जब वह फैजाबाद से प्रकाशित हिन्दी दैनिक जनमोर्चा मैं हुआ करते थे,बाद मैं आप मेरठ से प्रकाशित अमर उजाला मैं चले गए । मैं शायद उस समय बी ऐ कर रहा था ,बात १९८२ से 1984 के बीच कि है । ख़ैर डॉ सब का फोन मिलते ही मैं एक निश्चित समय पर उनसे मिला, वहां पर कम शुरू कर दिया। डेस्क पर लोगों ने परेसान करना शुरू कर दिया .और एक दिन मैं संपादक जी को बिना बताये वापस औरंगाबाद चला गया । इसी बीच मेरे पिताजी का देहांत वाराणसी मैं हुआ ,ख़बर मिलते ही भागा -भागा बनारस चला गया ,वहां पर लगभग एक माह तक रहा । जब लौटा तो फ़िर एक बार डॉ साहेब का फोन आया की आते हो या आऊं उसके बाद वापस हैदराबाद चल गया ,जहाँ से
कुछ समय बाद निजामाबाद संसकरण के लिए संसकरण प्रभारी बनाकर भेज दिया गया। यह बात सन २००० जून की है, तब से यहीं पर कार्यरत हूँ । आगे का पता नहीं।
अपने पत्रकारिता के अब तक के जीवन में मैं ने कई उतार - चढाव भी देखें हैं । वहीं काफी कुछ सिखाने को भी मिला । अपने समय की महान हस्तियों से बात करने का मौका भी। जैसे कत्थक नृत्य की जनक (यही कहें तो उचित होगा) श्रीमती अलक नन्दा जिन्हें कशी के लोग बुआ के नम से बुलाते थे ,से अन्तिम साक्षात्कार कराने का मौका मिला।वह साक्षात्कार उन दिनों की लोकप्रिय पत्रिकाओं धर्मयुग ,जनसत्ता ,जनमोर्चा ,जागरण आदि मैं प्रकाशित हुईं.
एक और साक्षात्कार के विषय मैं बताना चाहता हूँ ,बात १९८२-८३ की है ,वाराणसी के कशी विश्वानाथ मन्दिर से काफी मात्रा मैं चांदी गायब हुई थी ,जिसकी ख़बर ने लोगों को हिला कर रख दिया था। मैं उन दिनों पटना से प्रकाशित एक मासिक पत्रिका " आनंद डायजेस्ट" के लिए वाराणसी से स्वतंत्र लेखन करता था।आनंद मैं मैंने लिख दिया कीमन्दिर ट्रस्ट के अध्यक्ष होने के बावजूद कशी नरेश डॉ विभूति नारायण सिंह बीते ३८ वर्षों (उस समय) से मन्दिर मैं क्यों नही गए ,इसका जवाब कोंन देगा ? यह ख़बर फोटो सहित जब प्रकाशित कर बाज़ार मैं आई तो तहलका सा मच गया ,कशी नरेस के एक दूत ने (कोई पंडित जी हुवा करते थे ,जो उन दिनों पी. आई.बी .वाराणसी में कम करते थे ) मुझसे संपर्क किया ,और कहा की कशी नरेश जी बात कारन चाहते हैं ,
मैंने हमीं भर दी, निश्चित समय पर नदेसर स्थित नदेसर पेलेस (अब तो वहां पर पांच सितारा होटल व् कालोनी बन गई है ) मैं पहुँचा ,मन थोड़ा सा डर भी था ,पहली बार इतने बड़े व्यक्ति से मिलने जा रहा था । ख़ैर कशी नरेश जी से बात इस शर्त पर तय हुई थी किजो भी बात होगी वह टेप रिकार्ड पर होगी, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया था ,
मैं अपने एक मित्र का टेप ले कर गया, उन दिनों टेप रिकार्डर आज कि तरह छोटे से तो होते नही थे, वह भी बुश कम्पनी का था .मेरे साथ मेरे फोटोग्राफर मित्र अतुल केसरी भी थे, नदेसर पेलेस के विसाल कमरे मैं मुझे ले जाया गया ,जहाँ पर राजा साहेब कशी नरेश विराज मान थे , अनोपचारिक अभिवादन के बाद बातचीत शुरू हुई ,पहले तो वे हावी होना चाहे ,कुछ डराना भी , बात यहाँ तक पहुँच गई कि उन्होंने धमकाते हुवे कहा की एस .पी .या फ़िर जिलाधीश के सामने ही बात होगी ,जिसे मैं ने स्वीकारते हुवे कहा की आप चाहें तो पी. एम .को भी बुला सकते हैं (उन दिनों युवा था तो जोश भी था),कुछ क्षण सोचने के बाद राजा साहब ने बात करनी शुरू कर दी, उन्होंने वह कारन भी बताये कि वे क्यों नही मन्दिर में जाते हैं।